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समुदाय एवं सामुदायिक विकास - समुदाय का अर्थ - समुदाय की विशेषताएँ - जन सहयोग - सामाजिक समरसता - समुदाय का महत्‍व

समुदाय एवं सामुदायिक विकास - समुदाय का अर्थ - समुदाय की विशेषताएँ - जन सहयोग - सामाजिक समरसता - समुदाय का महत्‍व

समुदाय एवं सामुदायिक विकास


  • समुदाय का क्‍या अर्थ है ?
  • सामुदायिक विकास व जनसहयोग क्‍या है ?
  • जनससहयोग प्राप्‍त करने की दिशा में नगर/ग्राम स्‍तर की विभिनन समितियों की जानकारी एवं उनके कार्य क्‍या हैं ?
  • सामाजिक समरसता के विकास में समुदाय का क्‍या महत्‍व है ।

समुदाय का अर्थ 
कोई भी गाँव, प्रान्‍त व व देश अपने आप में समुदाय है । इस समुदाय में विभिनन जाति व धर्म के लोग एक साथ रहते हैं । ये अपनी-अपनी प्रथाओं, परम्‍पराओं, रीति-रिवाजों के अनुसार तीज-त्‍यौहार आदि मनाते हैं तथा विवाह आदि संस्‍कार करते हैं ।



               समुदाय एक ऐसा सामाजिक समूह हैं, जिसमें कुछ अंशों में 'हम' की भावना पाई जाती है । समुदाय का निवास स्‍थान  व क्षेत्र निश्चित होता है ।

समुदाय की विशेषताएँ -
            एक समुदाय की अपनी कुछ विशेषताएँ होती हैं, इनमें से कुछ विशेषताएँ ए‍स प्रकार हैं -

  • समुदाय व्‍यक्तियों का समूह होता है ।
  • कोई भी गाँव, प्रान्‍त, देश अपने आप में समुदाय है ।
  • समुदाय अपना विकास स्‍वत: करता है ।
  • समुदाय में विभिन्‍न जाति व धर्म के लोग एक साथ रहते हैं ।
  • समुदाय द्वारा किया गया कोई भी कार्य एक साथ रहते हैं ।
  • समुदाय अपने सदस्‍यों में अपनेपन और एकजुटता की भावना को बढ़ावा देते हैं ।
  • समुदाय के सदस्‍य एक - दूसरे के सुख-दु:ख में भागीदार होते हैं ।
  • समुदाय एक आत्‍मनिर्भर समूह होता है ।
  • सामुदायिक विकास व जनसहयोग 

मनुष्‍य परिवारों में रहते हैं और बढ़ते हैं । जन्‍म से मृत्‍यु तक मनुष्‍य परिवारों में रहते हैं । कई परिवार एक दूसरे के पास रहते हुए समुदाय बनाते हैं । समुदाय में शामिल परिवार अलग-अलग व्‍यवसाय करते हुए भी एकजुट रहते हैं । व्‍यवसाय की दृष्टि से मनुष्‍य क्रमश: धीरे-धीरे उन्‍नति कर विभिन्‍न अवस्‍थाओं अर्थात शिकारी, कंदमूल व फल संग्रहित करने, पशुपालन आदि स्थितियों से गुजर कर वह स्‍थाई किसान बना । उसने गाँव और नगर बसाए । मनुष्‍य अपनी मूलभूत आवश्‍यकताओं ( भोजन, आवास व वस्‍त्र ) से आगे के विषय में सोचने लगा । मनुष्‍य के निवास स्‍थानों में प्राकृतिक विविधता के कारण उसकी जीवन शैली, व्‍यवसाय, रीति-रिवाज, त्‍यौहार, पहनने-ओढ़ने का ढंग, खान-पान की आदतों में भी परिवर्तन होता गया । स्‍थानीय प्रतिकूलताओं के बावजूद भी लोगों ने अपना सामुदायिक जीवन स्‍वत: विकसित कर लिया । 


समुदाय एवं सामुदायिक विकास - समुदाय का अर्थ - समुदाय की विशेषताएँ - जन सहयोग - सामाजिक समरसता - समुदाय का महत्‍व



जन सहयोग 
जन सहयोग से हमारा आशय, स्‍थानीय सामुदायिक आवश्‍यकताओं की पूर्ति के लिए स्‍थानीय लोगों द्वारा सहयोग प्रदान करना है । 

समुदाय के विकास के लिए स्‍थानीय लोगों की भागीदारी बहुत महत्‍वपूर्ण है । यह ग्रामीण और शहरी समुदाय दोनों के लिए उपयुक्‍त है । ऐसा इसलिए आवश्‍यक है क्‍योंकि वे अपनी परिस्थितियों से परिचित हैं और स्‍थानीय जरूरतों को भली-भांति समझते हैं । यह उनके स्‍वयं के हित में है, कि वे एक साथ मिलजुल कर अपनी समस्‍याओं का हल निकालें । जैसे क्षेत्र में पेयजल या शिक्षा या अस्‍पताल जैसी मूल एवं मानवीय व्‍य‍वस्‍थाएँ नहीं हैं तो वे उसके लिए उचित अथवा वैकल्पिक उपाय करें । वे अपनी समस्‍याओं को स्‍वयं सुलझा सकें तथा किसी पर आश्रित न रहें । इस प्रकार लोगों में आत्‍मनिर्भरता की भावना का विकास होगा ।

जन सहयोग द्वारा लोगों में अपनी दशा सुधारने का उत्‍साह पैदा होता है । जनसहयोग से राज्‍य व केंद्रीय सरकारों के कार्यभार को बाँटने में सहायता मिलती है ।




ग्राम/नगर स्‍तरों पर विभिन्‍न समितियाँ
सामुदायिक विकास में स्‍थानीय नागरिकों की भूमिका बहुत जरूरी है । सामुदायिक विकास के लिए जन सहयोग प्राप्‍त करने की दिशा में ग्राम पंचायत व नगर पर विभिन्‍न समितियों की स्‍थापना की गई है । इन समितियों के माध्‍यम से प्रजातंत्र में सत्ता का विकेन्‍द्रीकरण नीचे के स्‍तर ( केंद्र से ग्राम/नगर ) तक किया गया है ।

            ग्राम स्‍वराज व्‍यवस्‍था के अंतर्गत 26 जनवरी 2001 से ग्राम स्‍वराज की स्‍थापना की गई है ।

ग्राम/नगर स्‍तर पर निम्‍निलिखित स‍मितियों का गठन केंद्र अथवा राज्‍य सर‍कार से प्राप्‍त निदेशों के अनुसार किया जाता है-
  • ग्राम/नगर विकास समिति
  • सार्वजनिक सम्‍पदा समिति
  • कृषि समिति
  • स्‍वास्‍थ्‍य समिति
  • ग्राम/नगर रक्षा समिति
  • अधो संरचना समिति
  • शिक्षा समिति
  • सामाजिक न्‍याय समिति
             उपरोक्‍त समितियों के माध्‍यम से स्‍थानीय निवासियों में जागरूकता पैदा कर सामुदायिक विकास के लिए जन सहयोग की भावना विकसित करने के अवसर प्रदान किये गये हैं ।

वर्तमान में जिन क्षेत्रों में जनसहयोग की विशेष आवश्‍यकता है । उन क्षेत्रों में कार्य करने वाली समितियों का परिचय इस प्रकार है-

(1) ग्राम/वार्ड शिक्षा समिति-
इस समिति का कार्य ग्राम/वार्ड में बच्‍चों की प्रारंभिक शिक्षा व्‍यवस्‍था में अपना स‍हयोग देना है । यह समिति विद्यालय के प्रबंधन में भी सहयोग देती है ।

(2) ग्राम/वार्ड रक्षा समिति - 
यह समिति ग्राम या वार्ड में लोगों की सुरक्षा संबंधी कार्यों में सहयोग करती है । साथ ही यह समिति अपराधों की रोकथाम में पुलिस प्रशासन का सहयोग करती है । 



(3) पालक - शिक्षक संघ -
मध्‍यप्रदेश में जन शिक्षा अधिनियम के अंतर्गत प्रदेश के प्रत्‍येक शासकीय प्राथमिक एवं माध्‍यमिक विद्यालय में पालक शिक्षक संघ (अब इसे शाला प्रबंधकन समिति के नाम से जाना जा‍ता है ) का गठन किया गया है । यह संघ विद्यालयों में बच्‍चों के शत-प्रतिशत प्रवेश, उनकी विद्यालयों में नियमित उपस्थिति, बच्‍चों के लिये विद्यालयों में मध्‍यान्‍ह भोजन व्‍यवस्‍था, बच्‍चों की शैक्षिक प्र‍गति, विद्यालयों में शिक्षकों की समुचित व्‍यवस्‍था एवं सहायता करने हेतु कार्य करती है ।

सामाजिक समरसता के विकास में समुदाय का महत्‍व -
आदिकाल से ही भारत देश विभिन्‍न धर्मों , जातियों, जनजातियों की कर्मभूमि रहा है । जाति प्रथा, ग्राम व्‍यवस्‍था, वर्ण व्‍यवस्‍था, आश्रम व्‍यवस्‍था, संस्‍कार व्‍यवस्‍था हमारे भारतीय समाज का प्रमुख आधार रहे है ।

सामाजिक समरसता -
समाज में व्‍यक्तियों का एक-दूसरे के सुख-दू:ख में समान रूप से शामिल होना, व्‍यवसाय, धर्म (पंथ) अलग-अलग होने के बावजूद एक-दूसरे के समारोहों में शामिल होना तथा मिल-जूलकर रहना सामाजिक समरसता के उदाहरण है !



समुदाय में किसान, बुनकर, दर्जी, बढ़ई, लोहार, दुकानदार, मजदूर आदि होते हैं । समुदाय में आजकल नर्सों, डाक्‍टरों, अध्‍यापकों, पुलिस, विद्युतकर्मियों  आदि की सेवाओं की भी आवश्‍यकता होती है । समुदाय में प्रत्‍येक परिवार अपनी आवश्‍यकताएँ पूरी करने की कोशिश करता है तथा दूसरे परिवारों की सहायता भी करता है । समुदाय इस प्रकार पारस्‍परिक आर्थिक निर्भरता को बढ़ावा देता है । यह परिवार के सदस्‍यों को सामाजिक भलाई के लिए सहयोग देता है । समुदाय अपने सदस्‍यों में सामाजिक समरसता और एकजुटता की भावना को बढ़ावा देता है ।

समुदाय में सदस्‍य सार्वजनिक सुविधाओं को बांटते हैं । अधिक महत्‍वपूर्ण यह है कि वे एक-दूसरे सुख-दु:ख में भागीदार होते हैं ।

समुदाय का महत्‍व-
व्‍यक्ति या समुदाय परस्‍पर संपर्क में आकर एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं । संपर्कों के कारण एक दूसरे के रीति-रिवाजों, विश्‍वासों, परम्‍पराओं एवं सांसकृतिक भिन्‍नताओं को समझने व उनका आदर करने में मदद मिलती है ।

समुदायों के निवास के क्षेत्र बदलने से जीवनयापन के तौर-तरीकों में बदलाव आ जाता है !

वर्तमान में ग्रा‍मीण/शहरी समुदायों में परिवर्तन एवं विकास के चिन्‍ह दिखाई पड़ रहे हैं । जैसे ग्रामों में संचार एवं विद्युत की सुविधाएँ बढ़ना, पक्‍के मकान, पक्‍की सड़कों का विकास, यातायात सुविधाओं का विस्‍तार आदि । समुदाय के विकास में शिक्षा के प्रसार एवं प्रभाव ने भी असर दिखाया है । इससे समुदाय का महत्‍व बढ़ा है ।


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पारस्‍परिक निर्भरता - गाँव व शहर के मध्‍य निर्भरता - दो देशों के मध्‍य निर्भरता

पारस्‍परिक निर्भरता - गाँव व शहर के मध्‍य निर्भरता - दो देशों के मध्‍य निर्भरता

पारस्‍परिक निर्भरता

  • पारस्‍परिक निर्भरता क्‍या है ?
  • समुदाय को पारस्‍परिक निर्भरता की आवश्‍यकता क्‍यों होती हैं ?
  • नगरीय व ग्रामीण क्षेत्रों के लोग आपस में किस प्रकार एक-दूसरे पर निर्भर है ?
  • नागरिक जीवन में परस्‍पर निर्भरता का क्‍या महत्‍व है ?
प्राचीन काल में व्‍यक्तियों की आवश्‍यकताएँ सीमित थीं ! व्‍यक्ति अपनी अधिकांश आवश्‍यकताओं की पूर्ति स्‍वयं कर लेता था ! जैसे-जैसे विकास क्रम में वह आगे बढ़ा, उसकी आवश्‍कताएँ बढ़ती गई ! व्‍यक्ति पूर्ति स्‍वयं कर लेता था ! व्‍यक्ति अपनी जरूरतों को पूरा करने में दूसरों का सहयोग लेने लगा एवं कुछ मामलों में दूसरे लोगों पर निर्भर रहने लगा ! मनूष्‍य की मूलभूत आवश्‍यकताएँ समान होती हैं जैसे भोजन, कपड़े व आवास ! इन आवश्‍यकताओं में वृद्धि और विविधता, पारस्‍परिक निर्भरता का कारण बनी !

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मनुष्‍य को जब विविधता का ज्ञान हुआ, उदाहरण के लिए भोजन में विभिन्‍न खाद्य वस्‍तुओं को पकाने के भिन्‍न ढंग, स्‍वाद में भिन्‍नता, आवास हेतु झोपड़ी या मकानों में भिन्‍नता तथा कपड़ों में विविधता आई तो प्रत्‍येक व्‍यक्ति को स्‍वयं ही ये सब जुटाना कठिन पड़ने लगा ! साथ ही विशेष चीजों में रुचि पैदा हुई और वह वस्‍तु उसे आवश्‍यक लगने लगी ! यह आवश्‍यकता उसे दूसरों के करीब ले गई तथा अपनी आवश्‍यकता व रुचियों की पूर्ति के लिए वह एक दूसरे पर निर्भर हो गया !

किसी कार्य या आवश्‍यकता के लिए एक का दूसरे पर निर्भर होना पारस्‍परिक निर्भरता कहलाता है !


पारस्‍परिक निर्भरता - गाँव व शहर के मध्‍य निर्भरता - दो देशों के मध्‍य निर्भरता


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गाँव व शहर के मध्‍य निर्भरता

भारत में लगभग 65-70 प्रतिशत लोग आज भी कृषि के व्‍यवसाय से जुड़े हुए है ! हम अपनी अधिकांश आवश्‍यकताओं को पूर्ण करने के लिए कृषि पर निर्भर है ! शहरी क्षेत्र अत्‍यधिक तकनीकी विकास के बावजूद भी कच्‍चे माल के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में उत्‍पादित वस्‍तुओं जैसे- अनाज, सब्जियों, फल, दूध आदि के लिए गाँव निर्भर रहते है ! इसी प्रकार ग्रामीण क्षेत्र खेती संबंधी वस्‍तुओं जैसे-खाद, बीज, दवाई, उन्‍नत मशीनें, कृषि यंत्र एवं दैनिक उपयोग की वस्‍तुओं आदि के लिए कारखानों व शहरों पर निर्भर रहते है ! इस प्रकार गाँव और शहरों में पारस्‍परिक निर्भरता बनी हुई है !



एक क्षेत्र की दूसरे क्षेत्र पर निर्भरता-
गाँव से बहुत सी वस्‍तुएँ शहर के लिए जाती हैं और शहर से बहुत सी वस्‍तुएँ गाँव में पहुँचती हैं ! इसके अलावा कई दूसरी चीजें अलग-अलग क्षेत्रों से शहर में पहुँचती है और वहाँ से दूसरे गाँव तक ले जाई जाती हैं ! इस तरह एक क्षेत्र बहुत दूर-दूर के अन्‍य क्षेत्रों  से जुड़ जाता है !

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एक क्षेत्र पर निर्भर है ! इस बात को आप अपने गाँव या शहर के अनुभव से जान सकते हैं ! किसी एक क्षेत्र में सभी प्रकार की चीजें उपलब्‍ध नहीं होतीं ! जैसे एक क्षेत्र में सभी प्रकार की फसलें नहीं उगाई जा सकतीं ! इसी तरह अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग वस्‍तुएँ बनाई जाती हैं ! जेसे साबुन कहीं बनता है तो खाद कहीं और बनती है ! इसलिए एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में चीजों को मंगवाना जरूरी हो जाता है ! इस प्रकार एक क्षेत्र दूसरे पर निर्भर हो जाता है ! इसी प्रकार दो अलग-अलग क्षेत्रों में बसे शहरों के बीच भी परस्‍पर निर्भरता पाई जाती है !

दो देशों के मध्‍य निर्भरता-
इसी प्रकार किसी एक देश में सभी आवश्‍यकता की चीजें उपलब्‍ध नहीं होती या कम मात्रा में होती हैं, इसलिए उन्‍हें दूसरे देशों से मंगाना पड़ता है ! हम अपने देश का ही उदहरण लें तो यहां पेट्रोलियम पदार्थ (पेट्रोल, डीजल, मिट्टि का तेल), सेना के उपयोग के लिए आधुनिक उपकरण, हथियार आदि दूसरे देशों से मंगाए जाते हैं ! हमारे देश से मसाले, चाय, सीमेंट, तैयार कपड़े आदि दूसरे देशों को भेजे जाते हैं !

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नागरिक जीवन में परस्‍पर निर्भरता-
हम सब भारत के निवासी हैं ! भारत में जन्‍म लेने एवं यहाँ के निवासी होने के कारण हम सब भारत के नागरिक हैं ! आप अपने परिवार के साथ रहते हैं, आपके माता-पिता भी साथ रहते हैं, आपके भाई-बहन, दादा-दादी भी आपके साथ रहते होंगे ! आपके परिवार के सभी सदस्‍य एक-दूसरे के साथ सहयोग करते हैं ! आपके घर के आसपास और भी परिवार रहते हैं ! वे भी कई प्रकार से आपकी सहायता करते होंगे, आप भी उनकी सहायता करते होंगे ! विद्यालय में भी प्रधानाध्‍यापक, शिक्षक, भृत्‍य, मॉनीटर आदि सभी विद्यालय चलाले में मदद करते हैं ! हम अपने परिवार, पड़ोस, विद्यालय, कस्‍बों, गाँवों में अनेक प्रकार के कार्य करते हैं ! हम सब एक साथ मिलकर रहते हैं और एक-दूसरे की मदद करते हैं, और एक-दूसरे की मदद करते हैं, इससे हमारा सामाजिक जीवन बेहतर व सुविधाजनक बनता है !
नागरिक जीवन आपसी सहयोग पर निर्भर करता है ! परिवार, विद्यालय, पड़ोस आदि में इस तरह के आपसी सहयोग की आवश्‍यता पड़ती है ! आपके विद्यालय के भी कुछ नियम होंगे जिनका पालन करना प्रत्‍येक छात्र तथा शिक्षक छात्र त‍था शिक्षक के लिए जरूरी है ! जो काम हमें नियमपर्वक करने होते हैं, हम उन्‍हें कर्तव्‍य भी कह सकते हैं ! हमारा नागरिक जीवन परस्‍पर सहयोग और कर्तव्‍य पालन पर ही निर्भर है !

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परिवार एवं समाज - व्‍यक्ति - सामाजिक संबंध - समाज कैसे बनता है ?

परिवार एवं समाज - व्‍यक्ति - सामाजिक संबंध - समाज कैसे बनता है ?

परिवार एवं समाज

  • व्‍यक्ति तथा परिवार क्‍या है ?
  • समाज कैसे बनता है ?
  • परिवार एवं समाज के आपसी संबंध !
आप जब शिशु अवस्‍था में थे, विद्यालय में पढ़ने नहीं आते थे, तब आपको घर पर कौन नहलाता धुनाता था ? आपको भोजन कौन करवाता था ? कपड़े कौन पहनाता था ? इन सभी कार्यों को आपके माता-पिता एवं घर के अन्‍य बडे़ सदस्‍य करते रहे होंगे ! जैसे-जैसे आप बड़े होते गए, कुछ काम आप स्‍वयं करने लगे होंगे ! घर अथवा पड़ोस में जब कोई बीमार पड़ जाता है, अथवा कोई कठिनाई में होता है, तब उसे दूसरों की सहायता की आवश्‍यकता होती है !



जरा सोचिए ! जब आप शिशु थे तब आपकी माता आपकी देखभाल न करती तो क्‍या होता  ? माता-पिता अपने शिशूओं की जिम्‍मेदारी सहज रूप से स्‍वीकरते हैं ! यही भावना परिवार तथा समाज के सदस्‍यों में होती है ! इसी से परिवार व समाज संगठित रहता है !

व्‍यक्ति

आइए व्‍यक्ति, परिवार एवं समाज के विषय में जानें ! व्‍यक्ति परिवार की एक इकाई है ! व्‍यक्ति अपने परिवार में रहते हुए पलते-बढ़ते हैं और विभिन्‍न क्षेत्रों में अपना विकास करते हैं ! यदि आप अपने घर में कभी अकेले रहे हों, तो बताइए कि उस समय आपको कैसा लगा ! यदि अधिक समय तक अकेले रहना पड़ा होगा ता आपको निश्चित ही अच्‍छा नहीं लगा होगा !
व्‍यक्ति की विशेषताएँ उसके वैयक्तिक गुण, भोजन, वस्‍त्र, आवास आदि के आधार पर निर्धारित होती हैं ! समाज में व्‍यक्ति राजनेता, धर्म उपदेशक, अध्‍यापक, न्‍यायाधीश, चिकित्‍सक, कृषक एवं श्रमिक आदि पद धारण कर विभिन्‍न कार्य करता है एवं समाज में अपनी पहचान बनाता है !



परिवार

परिवार में व्‍यक्ति एक इकाई है ! एकल परिवार में प्राय: पति-प‍त्‍नी, उनके पुत्र-पुत्रियाँ एवं संयुक्‍त परिवारों में पति-पत्‍नी व पुत्र-पुत्रियों के अतिरिक्‍त, दादा-दादी, चाचा-चाची आदि भी शामिल होते हैं !
परिवार में व्‍यक्तियों के साथ-साथ रहने पर सुरक्षा का भाव पैदा होता है ! परिवार के सदस्‍यों की परिवार में व्‍यक्तिगत आवश्‍यकताएँ भी पूरी होती हैं ! परिवार के बड़े बुजुर्ग सदस्‍यों का प्‍यार, सीख व मार्गदर्शन छोटों से प्राप्‍त होता है ! माता को प्रथम गुरू भी कहा गया है ! बच्‍चे को प्रथम शिक्षा परिवार में माता के माध्‍यम से प्राप्‍त होती है ! परिवार के बड़े सदस्‍य बच्‍चों की साफ-सफाई, स्‍वास्‍थ्‍य व शिक्षा का ध्‍यान एवं बड़े-बूढ़ों की देखभाल सहर्ष करते हैं ! बच्‍चों को आगे की शिक्षा प्राप्‍त करने के लिए परिवार ही उन्‍हें विद्यालयों को सौंपता है ! परिवार के छोटे सदस्‍य भी वृद्धजनों की देखभाल करते हैं, व बड़ों का आदर करते हैं !


परिवार एवं समाज - व्‍यक्ति - सामाजिक संबंध - समाज कैसे बनता है ?


आपस में रिश्‍तेदारी, रक्‍त संबंध होते हुए एक घर में रहने वाले सदस्‍यों से मिलकर परिवार बनता है ! छोटे परिवार को आदर्श परिवार माना गया है ! विद्यालय भी एक परिवार के समान है ! 

समाज

कई परवारों से मिलकर समाज का निर्माण होता है ! परिवार समाज की एक इकाई है ! एक प्रकार के समाज में खान-पान, रहन-सहन, रीति-रिवाज, परम्‍पराएँ एवं प्रथाएँ प्राय: एक ही प्रकार के होते हैं !
वर्तमान में बदलने आर्थिक एवं सामाजिक संदर्भों में समाज नए प्रकार से भी संगठित हो रहे हैं ! इन परिवर्तनों में शिक्षा का महत्‍वपूर्ण स्‍थान है ! इनका उद्देश्‍य सामाजिक रीति-रिवाजों में आ गर्इ कुरीतियों को दूर करना है ! वर्तमान में जागरूक समाज के लोग अपने-आपको संगठित कर एक मंच पर आना शुरू हो गए हैं ! 



वे अशिक्षा, बाल-विवाह, दहेज जैसी सामाजिक बुराइयों को दूर करने के लिए कार्य कर रहे हैं ! यह नवीन सामाजिक प्रवृत्ति कर परिचालक है ! ऐसे संगठित समाज के लोगों ने अपने समाज के नियमों का भी निर्धारण किया है और सामाजिक क्रियाकलापों द्वारा व समाज के सदस्‍यों को विभिन्‍न प्रकार से प्रोत्‍साहन भी दे रहे हैं !
मनुष्‍य एक सामाजिक प्राणी है, अत: समाज से पृथक रहकर वह अपनी तथा अपने सामाजिक हितों की रक्षा नहीं कर सकता ! यदि मनुष्‍य, मनुष्‍य की भांति रहना चाहता है, तो उसे अपने आसपास के लोगों से अच्‍छे सम्‍बन्‍ध बनाए रखने चाहिए !


परिवार एवं समाज - व्‍यक्ति - सामाजिक संबंध - समाज कैसे बनता है ?


समाज एक व्‍यावस्‍था है ! प्रत्‍येक समाज की एक संरचना होती है ! समाज का अपना संगठन होता है ! समाज का आधार सामाजिक संस्‍थाएँ और संबंध होते हैं !


सामाजिक संबंध

यदि दो व्‍यक्ति रेलगाड़ी या बस में साथ-साथ यात्रा कर रहे हैं और आपस में बातचीत भी कर रहे हैं, तो इतने मात्र से सामाजिक संबंध नहीं बन जाते ! यह कुछ देर का संपर्क मात्र है ! यदि सम्‍पर्कों को बढ़ाया जाए, एक-दूसरे के सुख-दु:ख में शामिल हुआ जाए तथा सम्‍पर्कों को किसी प्रकार का स्‍थाई आधार दिया जाए और इनका निर्वाह भी किया जाए तो सामाजिक संबंधों की स्‍थापना हो सकती है !

समाज कैसे बनता है ?
समाजशास्त्रियों ने समाज को सामाजिक संबंधों का जाल माना है ! वास्‍तव में अनेक परिवारों के आपसी संबंधों से समाज का निर्माण होता है मनुष्‍य सामाजिक प्राणी है अत: वह परिवार एवं समाज दोनों से जुड़कर रहता है ! व्‍यक्ति के जीवन में विवाह हेतु उचित साथी का चुनाव तथा विवाह के बाद बच्‍चों का पालन-पोषण उनकी शिक्षा-दीक्षा की व्‍यवस्‍था करना आदि की चिंताएँ सामने आती हैं ! समाज के सदस्‍य एवं उसके पारिवारिक मित्र आदि इन समस्‍याओं को सुलझाने में अपनी राय भी देते हैं ! 


एक उन्‍नत समाज में व्‍यक्तियों की आपस में निर्भरता, साथ-साथ कार्य करने की भावना, व्‍यक्तिगत विचारों का सम्‍मान एवं सामाजिक घटना का सही-गलत विश्‍लेषण करने की क्षमता पाई जाती है !

शिक्षित समाज अनेक सामाजिक समस्‍याओं जैसे कम उम्र में विवाह, अधिक संतानों का होना, बच्‍चों को प्रारंभिक एवं अनिवार्य शिक्षा न दिनाना जैसी बुराइयों पर नियंत्रण लगा सकता है !


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