इतिहास जानने के स्त्रोत
- इतिहास क्या है ?
- इतिहास के स्त्रोतों के महत्व व उपयोगिता !
- ऐतिहासिक धरोहरों के महत्व एवं उनके सुरक्षा में हमारा क्या दायित्व है ?
'संस्कृत' भाषा में इति+ह+आस से मिलकर इतिहास शब्द बना है ! जिसका अर्थ होता है जो ऐसा (घटा) था ! अर्थात् भूतकाल में घटित घटनाओं या उससे सम्बन्धित व्यक्तियों का विवरण इतिहास है !
मानव अपने अतीत के सम्बन्ध में जिज्ञासु रहा है ! अपने निवास स्थलों के समीप निर्मित भवनों दुर्गों, मंदिरों, तालाबों एवं बावडि़यों आदि पुरातात्विक सामाग्री के अवशेषों से वह अपनी प्राचीनता का अनुमान लगाता है ! इतिहास के अध्ययन से हमें मानव के क्रमिक विकास की जानकारी मिलती है !
इतिहासकार प्राचीन काल की जानकारी के लिए कुछ निश्चित साधनों की मदद लेते हैं ! ये साधन उस काल के औजार, जीवाश्म, पात्र, भोजपत्र, आभूषण, इमारतें, सिक्के, अभिलेख, चित्र, यात्रियों द्वारा लिखे यात्रा विवरण तथा तत्कालीन साहित्य आदि हैं ! इन साधनों को इतिहास जानने के स्त्रोत कहते हैं, जिनहें मुख्य रूप से दो वर्गों में बांटा जाता है-
- पुरातात्विक स्त्रोत
- साहित्यिक स्त्रोत
शिलालेख : पत्थरों पर खोदकर लिखी गई बातों को शिलालेख कहते हैं !
भोजपत्र : एक विशेष प्रकार की वृक्ष की छाल, जिस पर प्राचीन ग्रंथ आदि लिखे जाते थे !
ताड़पत्र : ताड़वृक्ष के पत्तों पर रंग या स्याही से लिखी गई बातों वाले पत्र को ताड़पत्र कहते हैं !
ताम्रपत्र : तांबे के पत्तरों पर खोद कर लिखी गई बातों वाले तांबे के पत्तरों को ताम्रपत्र कहते हैं !
जीवाश्म : प्राचीन जीव, मनुष्य, जानवरों की हडि़्डयाँ जो पाषाण के रूप में परिवर्तित होना प्रारंभ हो जाती है !
अधिकांश शिलालेख संस्कृत, प्राकृत, पाली एवं तमिल भाषा में हैं तथा ब्राह्मी लिपि में लिखे गयेहैं ! इसलिए इन्हें सभी लोगों के लिए पढ़ना कठिन होता है ! लेकिन कुछ लिपिशास्त्री और पुरातत्ववेत्ता इन्हें पढ़ लेते हैं !
पुरातत्ववेत्ता : वे व्यक्ति जो पुरानी वस्तुओं, स्थलों की खोज करते हैं, और उनके बारे में सही तथ्यों का पता लगाते हैं !
मानव के जब लिपि का ज्ञान नहीं था तब उस समय वे चित्रों के माध्यम से अपनी बातें शिलाओं पर चित्रित करते थे ! इन चित्रों को 'शैल चित्र' कहते हैं ! मध्यप्रदेश में भोपाल के पास भीमबेटका के शैल चित्र इस बात के जीवंत प्रमाण है ! शैलचित्र भारत के विभिन्न भागों में मिलते हैं ! भीमबेटका विश्व का सबसे बड़ा शैल चित्र स्थल है !
इसकी खोज पद्मश्री ड़ॉ. वि.श्री. वाकणकर के द्वारा की गई थी ! इस स्थल को विश्व धरोहर सूची में सम्मिलित किया गया है !
इसकी खोज पद्मश्री ड़ॉ. वि.श्री. वाकणकर के द्वारा की गई थी ! इस स्थल को विश्व धरोहर सूची में सम्मिलित किया गया है !
साहित्यिक स्त्रोत तत्कालीन समय की विभिन्न बातों पर प्रकाश डालते हैं ! प्राचीन समय के ग्रंथ जैसे वेद, पुराण, रामायण, महाभारत, संगम साहित्य और त्रिपिटिक आदि उस समय के समाज, नगरों, रीति-रिवाजों, संस्कृति के बारे में प्रकाश डालते हैं !
प्राचीनकाल के भवन, महल, मंदिर, मस्जिद, चर्च, किले, बावड़ी आदि हमें उस समय की कला-संस्कृति, समृद्धि, धार्मिक, सामाजिक, राजनैतिक स्थिति की जानकारी देते हैं !
यूनानी यात्री मेगस्थनीज, चीनी यात्री ह्वेनसांग, फाह्यान तथा इत्सिंग और अन्य देशों के यात्रियों ने हमारे देश की यात्रा-विवरण से हमें उस समय की सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक स्थिति के बारे में जानकारी मिलती है !
समय के प्रवाह के साथ-साथ व्यापार वाणिज्य ने अपनी जगह बनाई ! व्यापारी एक स्थान से दूसरे स्थान पर गये, आपसी मेल-मिलाप हुआ ! लेन-देन बढ़ा ! संस्कृति का परिवर्तन क्रम शुरू हुआ ! भाषा एवं लिपि एक स्थान से दूसरे स्थान से दूसरे स्थान पर गई तथा विभिन्न भाषाओं के मिश्रण से नई भाषाओं ने जन्म लिया ! जीवन के क्षेत्रों में परिवर्तन शुरू होकर जीवन मूल्यों में परिवर्तन का दौर शूरू हुआ !
यूनानी यात्री मेगस्थनीज, चीनी यात्री ह्वेनसांग, फाह्यान तथा इत्सिंग और अन्य देशों के यात्रियों ने हमारे देश की यात्रा-विवरण से हमें उस समय की सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक स्थिति के बारे में जानकारी मिलती है !
समय के प्रवाह के साथ-साथ व्यापार वाणिज्य ने अपनी जगह बनाई ! व्यापारी एक स्थान से दूसरे स्थान पर गये, आपसी मेल-मिलाप हुआ ! लेन-देन बढ़ा ! संस्कृति का परिवर्तन क्रम शुरू हुआ ! भाषा एवं लिपि एक स्थान से दूसरे स्थान से दूसरे स्थान पर गई तथा विभिन्न भाषाओं के मिश्रण से नई भाषाओं ने जन्म लिया ! जीवन के क्षेत्रों में परिवर्तन शुरू होकर जीवन मूल्यों में परिवर्तन का दौर शूरू हुआ !
हमें अपने देश की प्राचीन धरोहरों की रक्षा करना चाहिये क्योंकि उन्हीं के आधार पर हमें अपने अतीत की जानकारी मिलती है ! प्राचीन धरोहरें राष्ट्र की गौरवशाली संस्कृति की परिचायक होती है !