मौर्य साम्राज्‍य - बिन्‍दूसार - सम्राट अशोक एवं उसका हृदय परिवर्तन - मौर्यकालीहन समाज - मौर्य साम्राज्‍य का पतन

मौर्य साम्राज्‍य
  • मौर्य साम्राज्‍य का उदय कैसे हुआ ?
  • मौर्य काल के राजनैतिक, आर्थिक एवं सामाजिक जीवन की विशेषताएँ क्‍या थी ?
  • मौर्यकालीन कला, संस्‍कृति तथा साहित्‍य की विशेषताएँ क्‍या थी ?
पिछले व्‍लोग में आपने जनपद, महाजनपद और मगध साम्राज्‍य के उत्‍कर्ष के बारे में पढ़ा है । आप य‍ह भी जानते हैं कि नन्‍द राजाओं के समय सिकन्‍दर ने क देशों को जीतकर अपना साम्राज्‍य विस्‍तृत किया था तब मगध पर नन्‍द वंश के शासक महापद्म नन्‍द का शासन था । नन्‍द राजा के पास अपार सम्‍प‍ित्त थी और वह भारत का शक्तिशाली राज्‍य माना जाता था । परन्‍तु नन्‍द राजा बहुत ही क्रूर शासक था इसलिए वह जनता में लोकप्रिय नहीं था । नन्‍द राजा से सत्ता छीनने का कार्य चन्‍द्रगुप्‍त मौर्य ने किया ।
चन्‍द्रगुप्‍त ने चाणक्‍य (कौटिल्‍य ) के सहयोग से नन्‍द राजा को गद्दी से हटाने की योजना बनाई । सिकन्‍दर ने वापस लौट जाने के बाद, चन्‍द्रगुप्‍त ने पंजाब की असंतुष्‍ट जातियों को संगठित कर यूनानियों को भारत से खदेड़कर पूरे पंजाब पर अधिकार कर लिया और नन्‍द राजवंश का तख्‍ता पलट कर 322 ई.पू. में मौर्य साम्राज्‍य की स्‍थापना की । मौर्य साम्राज्‍य की राजधानी (बिहार में स्थित वर्तमान पटना ) थी ।


जब राजा अपने राज्‍य की सीमा का अत्‍यधिक विस्‍तार कर लेते है तो उनके राज्‍यों को साम्राज्‍य कहा जाता है ।
इसके बाद चन्‍द्रगुप्‍त मौर्य ने सिकन्‍दर द्वारा (सिन्‍धु व अफगानिस्‍तान क्षेत्र के) नियुक्‍त प्रशासक सेल्‍युकस को हराया और इस क्षेत्र को अपने राज्‍य में मिला लिया । चन्‍द्रगुप्‍त से पराजित होने के बाद सेल्‍युकस ने अपनी पुत्री का विवाह चन्‍द्रगुप्‍त मौर्य से किया तथा मेगस्‍थनीज को अपना राजदूत बनाकर पाटलिपुत्र भेजा । मेगस्‍थनीज ने अपनी पुस्‍तक 'इण्डिका' में उस समय के समाज का वर्णन किया है ।

बिन्‍दूसार
          यह चन्‍द्रगुप्‍त का पुत्र था तथा अपने पिता द्वारा गद्दी पर बैठाया गया था । कहा जाता है कि चन्‍द्रगुप्‍त मौर्य अंतिम दिनों में जैन मुनि हो गया था । बिन्‍दूसार ने मैसूर तक अपने राजय का विस्‍तार किया । कलिंग और सुदूर दक्षिण के कुछ राज्‍यों को छोड़कर लगभग सारा देश उसके साम्राज्‍य में सम्मिलित था । दक्षिण के राज्‍यों से बिन्‍दूसार की मित्रता थी । इस कारण उन पर उसने हमले नहीं किये । परंतु कलिंग ( वर्तमान में उडिसा का एक भाग ) के लोग मौर्य साम्राज्‍य के साथ नहीं रहना चाहते थे । इसलिये मौर्यों ने उन पर आक्रमण किया । यह काम चन्‍द्रगुप्‍त के पौत्र अशोक ने किया । 



सम्राट अशोक एवं उसका हृदय परिवर्तन
सम्राट अशोक मौर्य वंश का सबसे प्रसिद्ध शासक हुआ था । उसे अपने दादा चन्‍द्रगुप्‍त और पिता बिन्‍दुसार से एक विशाल और सुव्‍यवस्थित साम्राज्‍य विरासत में मिला था । अशोक ने कलिंग राज्‍य को जीतकर अपने साम्राज्‍य में मिलाने का निश्‍चय किया । अपने राज्‍याभिषेक के आठवें वर्ष में उसने कलिंग पर विजय प्राप्‍त की । युद्ध में दोनों ही सेनाओं को भारी नुकसान हुआ । एक लाख सैनिक मारे गये तथा लाखों लोग घायल हुए । भीषण नरसंहार और जनता के कष्‍ट के दृश्‍य को देख अशोक का मन विचलित हो गया । 
युद्ध में अकारण मारे गये लोगों तथा घायल सैनिकों की पीडि़त स्त्रियों और बच्‍चों को देखकर भी उसे बड़ी पीड़ा हुई । उसने भविष्‍य में कभी युद्ध न करने का प्रण किया । सम्राट अशोक ने अपने तीस साल के शासन में कलिंग युद्ध के बाद कोई युद्ध नहीं लड़ा । उसने लोगों को शांतिपूर्वक रहने की शिक्षा दी । उसका विशाल साम्राज्‍य सुदूर दक्षिण को छाड़कर पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में था । अशोक ने इतने बड़े साम्राज्‍य पर शांतिपूर्वक और धर्म पर चलते हुये शासन किया । उसने लोगों को अनेक संदेश दिये, जो आज भी चट्टानों, स्‍तंभों, शिलाओं पर खुदे (देखे जा सकते) हैं । 



ये शिलालेख पत्‍थरों तथा स्‍तंभों पर खुदवाकर ऐसे स्‍थानों पर लगवाए गए जहां लोग एकत्रित होकर उन्‍हें पढ़े और शिक्षा ग्रहण करें । अशोक के शिलालेख ब्राह्मी, खरोष्‍ठी व अरेमाइक लिपि में मिलते हैं । इनकी भाषा प्राकृत है । ब्राह्मी लिपि भारत में, खरोष्‍ठी लिपि पाकिस्‍तान क्षेत्र में तथा अरेमाइक लिपि अफगानिस्‍तान क्षेत्र में प्रचलित थी । अत: शिलालेखों में आम जनता की भाषा व लिपि का प्रयोग ताकि वे अपने सम्राट के विचारों को समझे ।

अशोक का धर्म - कलिंग युद्ध के परिणामस्‍वरूप सम्राट अशोक का हृदय परिवर्तन हो गया । उसने युद्ध त्‍याग करके 'धम्‍म विजय' का मार्ग अपनाया । बाद में अशोक बौद्ध धर्म का अनुयायी बन गया था । वह ऊँचे मानवीय आदर्शों में विश्‍वास करता था, जिससे लोग सदाचारी बने और शांति से रहे । इन्‍हें उसने 'धम्‍म' कहा संस्‍कृत के धर्म शब्‍द का प्राकृत रूप 'धम्‍म' है । धर्म को राजाओं के माध्‍यम से सभी प्रांतों में शिलालेखों के रूप में खुदवाया । अशोक चाहता था कि सभी धर्मों के लोग शांतिपूर्वक रहें । छोटे, बड़ों की आज्ञा माने । बच्‍चे, माता-पिता का कहना सुने । मालिक अपने नौकरों से अच्‍छा व्‍यवहार करे । वह मनुष्‍य और पशु दोनों की हत्‍या का विरोधी था उसने धार्मिक अनुष्‍ठानों में पशु-बलि पर रोक लगा दी । अशोक चाहता था कि लोग मांस न खाये इसलिये उसने खुद के रसोई घर में प्रतिदिन पकाएं जाने वाले हिरण और मोर के मांस पर रोक लगा दी ।



अशोक का प्रशासन - अशोक अपनी प्रजा की अपने बच्‍चों की तरह देखभाल करता था । उसने प्रजा की भलाई के अनेक कार्य किए जैसे-

  • पुरों व नगरों को एक-दूसरे से जोड़ने के लिए अच्‍छी सड़कें बनवाई ताकि लोग सरलता से यात्रा कर सकें।
  • राहगीरों को तेज धूप से बचाव के लिये सड़कों के दोनों ओर छाया व फलदार वृक्ष लगवाएं ।
  • पानी के लिये कुएं, बावड़ी, बाँध बनवाये ।
  • यात्रियों के रूकने के लिए अनेक धर्मशालाएं बनवाई ।
  • रोगियों के लिए चिकित्‍सालय खुलवाए एवं नि:शुल्‍क औषधियों को देने की व्‍यवस्‍था करवाई ।
  • पशुओं एवं पक्षियों के लिये अलग से चिकित्‍सा केंद्रों का प्रबंध किया इन्‍हें पिंजरापोल कहा जाता था ।

राजधानी पाटलिपुत्र में प्रशासन के प्रत्‍येक विभाग के अध्‍यक्ष रहते थे । सम्राट को सलाह देने के लिए 'मंत्रि-परिषद्' थी । साम्राज्‍य को चार प्रांतों में बांटा गया था । प्रत्‍येक प्रान्‍त का शासन एक राज्‍यपाल सँभालता था, जो अधिकतर राजकुमार होता था ।


प्रत्‍येक प्रान्‍त को जिलों में बांटा गया था तथा जिलों में गाँवों को सम्मिलित किया गया था । राजाज्ञा के पालन व कानून व्‍यवस्‍था के लिए कई अधिकारी थे । कुछ अधिकारी कर वसूली का काम करते थे और कुछ न्‍यायाधीश होते थे । गांवों में अधिकारियों के दल होते थे । जो पशुओं का लेखा - जोखा रखते थे । नगरों की व्‍यवस्‍था को नगर परिषदें देखती थी ।

इन अधिकारियों के अलावा उसने 'धर्म महामात्‍य' भी नियुक्‍त किये थे, जो घूम-धूम कर लोगों की समस्‍याएं सुनते, स्‍थानीय कामों की जांच-पड़ताल करते और लोगों को धर्मानुसार आचरण करने और मेल-जोल से रहने की प्रेरणा देते थे ।

पड़ोसी देशों से संबंध- सम्राट अशोक ने दूर-दूर तक के राज्‍यों में अपने धर्मदूत भेजे तथा उनसे मित्रता की । उसने श्रीलंका में धर्म प्रचार के लिए अपने पुत्र महेन्‍द्र एवं पुत्री संधमित्रा को भेजा । श्री लंका के राजा ने बौद्ध धर्म स्‍वीकर किया । इसी तरह दूसरे कई देशों के लिए उसने अपने दूत भेजे थे ।

मौर्यकालीहन समाज - मेगस्‍थनीज ने अपनी पुस्‍तक 'इंडिका', में जो कि यूनानी भाषा में लिखी थी, इसमें उस समय के भारतीय समाज का वर्णन है जैसे, अधिकतर लोग खेती करते थे और लोग सुखपूर्वक गाँवों में रहते थे । चरवाहे और गड़रिये भी गाँव में ही रहते थे । बुनकर, बढ़ई, लोहार, कुम्‍हार और अन्‍य कारीगर नगरों में रहते थे । ये राजा के उपयोग की वस्‍तुएं तथा नागरिकों के लिए सामान बनाते थे । व्‍यापार उन्‍नति पर था और व्‍यापारी दूर-दूर तक अपना माल बेचने जाया करते थे । ये लोग समुद्र के पार फारस की खाड़ी होते हुए पश्चिमी देशों को जाते थे । बड़ी संख्‍या में लोग सेना में भर्ती होते थे । सैनिकों को अच्‍छा वेतन मिलता था । समाज में ब्राह्मण, जैन और बौद्ध भिक्षुओं का सम्‍मान किया जाता था । इस काल में चांदी सोने व तांबे के सिक्‍के चलते थे । पर्दा प्रथा नहीं थी । जीवन सरल सुखद व मिव्‍ययिता पूर्ण था ।


मध्‍यप्रदेश में मौर्यकाल के स्‍तूप साँची, भरहुत (सतना), सतधारा, तुमैन (जिला अशोकनगर), बरहट (जिला रीवा), उज्‍जैन आदि जगहों पर बने हैं । अशोक का साँची स्‍तूप, जिस पर चार सिंह बने हैं, अब साँची के संग्रहालय में रखा है । अशोक के स्‍तंभ लेख साँची व बरहट से मिले हैं तथा शिलालेख दतिया के पास गुजर्रा गाँव तथा भोपाल के पास पानगुराडि़या (नचने की तलाई) स्‍थान पर है । जबलपुर के निकट रूपनाथ स्‍थल से अशोक का लघु शिलालेख मिला है । साँची के बौद्ध स्‍मारक विश्‍व प्रसिद्ध है । साँची के बौद्ध स्‍मारक विश्‍व प्रसिद्ध है । इसे विश्‍वदाय भाग में सम्मिलित किया गया है । उज्‍जैन में अशोक 11 वर्ष अवन्ति का गवर्ननर रहा, उसके पुत्र महेन्‍द्र तथा पुत्री संधमित्रा का जन्‍म उज्‍जैन में हुआ था । अशोक की एक रानी विदिशा की थी ।
मौर्य साम्राज्‍य - बिन्‍दूसार - सम्राट अशोक एवं उसका हृदय परिवर्तन - मौर्यकालीहन समाज - मौर्य साम्राज्‍य का पतन



  • मेगस्‍थनीज यूनानी लेखक था । वह अवोशिया के क्षत्रप (शासक) के साथ रहता था और वहां से वह सेल्‍यूकस द्वारा अपना राजदूत बनाकर चन्‍द्रगुप्‍त मौर्य की राजसभा में पाटलिपुत्र भेजा गया था ।
  • सारी दूनिया ने भारत से अंक तथा दशमलव प्रणाली सीखी । अरबों ने भारत से सीखा तथा यूरोपवासियों को सिखाया ।
  • भारत से बौद्ध धर्म चीन पहुँचा । वहां से यह धर्म कोरिया और जापान गया ।
मौर्य कला - अशोक ने अपने संदेश चमकीली शिलाओं तथा स्‍तंभों पर खुदवाएं । स्‍तंभों के शीर्ष पर हाथी, साँड या सिंह की प्रतिमा बनाई गई थी । सारनाथ के स्‍तंभ पर चार सिंहों की आकृति बनी हुई है । ये स्‍तंभ आज भी देखे जा सकते हैं । सन् 1947 में भारत की स्‍वतंत्रता के बाद अशोक सारनाथ स्‍तंभ की चार सिंहों वाली कलाकृति को राष्‍ट्रीय चिन्‍ह के रूप में अपनाया गया । यह सिंह स्‍तंभ आज सारनाथ के संग्रहालय में रखा है । इस काल में कई स्‍तूप, स्‍तंभ तथा भिक्षुओं के रहने के लिए बिहार व पर्वतों को काटकर गुफाएं बनवायी गयी । मूर्तियों में यक्ष और यक्षणी तथा पशुओं की मूर्तियाँ बनायी गयी थीं ।



मौर्य साम्राज्‍य का पतन - सम्राट अशोक और उसके पूर्वजों द्वारा स्‍थापित विशाल मौर्य साम्राज्‍य लगभग सौ वर्षों से कुछ अधिक समय तक चलता रहा और अशोक की मृत्‍यू होने के पश्‍चात वह छिन्‍न-छिन्‍न उत्तरीधिकारी उसकी तरह कुशल और योग्‍य नहीं थे । विशाल साम्राज्‍य के संचालन के लिए आवश्‍यक राशि भी कर के रूप में वसूल नहीं कर पा रहे थे । वे राजा जो अशोक के अ‍धीन थे, अब स्‍वतंत्र होने लगे । इस प्रकार साम्राज्‍य कमजोर होता चला गया । फूट का परिणाम यह हुआ कि बैक्‍ट्रीया देश के यूनानी शासक ने पश्चिमोत्तर भाग पर हमला कर दिया । उस क्षेत्र के राजा को किसी अन्‍य राजा ने सहायता नहीं दी और वह पराजित हुआ । 185 वर्ष ई.पू. में पुष्‍यमित्र शुंग ने अंतिम मौर्य शासक वृहद्रथ का वध कर मौर्य साम्राज्‍य का अंत कर दिया और शुंग वंश की स्‍थापना हुई ।


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