वैदिक संस्कृति
- वैदिक संस्कृति क्या है ?
- आर्यों का जीवन कैसा था ?
- वैदिककाल में सामाजिक व आर्थिक जीवन कैसा था ?
वेद भारत के प्राचीन ग्रंथ हैं ! वेद, उपनिषद, ब्राह्मण, अरण्यक आदि को वैदिक साहित्य कहते हैं ! वेद का अर्थ है ज्ञान अथवा पवित्र आध्यात्मिक ज्ञान ! विद्वान लोग वैदिक काल और वैदिक साहित्य को दो भागों में बाँटते हैं- प्रारंभिक दौर का प्रतिनिधित्व ऋग्वेद करता है ! इस काल को पूर्व वैदिककाल या ऋग्वैदिक काल भी कहा जाता है और बाद के दौर में शेष तीनों वेद (सामवेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद), ब्राह्मण, अरण्यक और उपनिषद् आते हैं ! इस काल को उत्तर वैदिक काल भी कहा जाता है ! वैदिक साहित्य को समृद्ध होने में लंबा समय लगा ! वैदिक साहित्य से हम वैदिक काल के लोगों के निवास के क्षेत्र, उनके खान-पान व रहन-सहन के विषय में जान पाते हैं ! इस युग की संस्कृति को ही वैदिक संस्कृति कहते हैं !
इतिहासकारों का मत है कि इस काल में कुछ लोग उत्तर-पूर्वी ईरान, कैस्पियन सागर या मध्य एशिया से छोटे छोटे समूहों में आकर पश्चिमोत्तर भारत में बस गये ! ये अपने आप को आर्य कहते थे ! कतिपय इतिहासकार इस मत को स्वीकार नहीं करते हैं क्योंकि इसके पुरातात्विक व साहित्यिक प्रमाण नहीं हैं ! उनका मत है कि आर्य भारत के मूल निवासी थे ! सभ्यता और संस्कृतियों का विकास सदैव नदियों के किनारे हुआ है ! सिन्धु, सतलज, व्यास, सरस्वती नदियों के किनारे आर्यों ने ऋचाओं की रचना की, जिनका संग्रह ऋग्वेद है !
वर्तमान में विलुप्त, सरस्वती नदी का वर्णन वैदिक साहित्य में मिलता है ! पुरातत्ववेत्तओं तथा भूवैज्ञानिकों ने अपनी नवीन खोजों से सिद्ध किया है कि सरस्वती नदी 2000 ई.पू. तक पृथ्वी पर प्रवाहित होती रही होगी ! पुरातत्ववेत्ताओं का अनुमान है कि हड़प्पा सभ्यता का उद्गम तथा विनाश सरस्वती नदी के किनारे हुआ होगा !
वर्तमान में विलुप्त, सरस्वती नदी का वर्णन वैदिक साहित्य में मिलता है ! पुरातत्ववेत्तओं तथा भूवैज्ञानिकों ने अपनी नवीन खोजों से सिद्ध किया है कि सरस्वती नदी 2000 ई.पू. तक पृथ्वी पर प्रवाहित होती रही होगी ! पुरातत्ववेत्ताओं का अनुमान है कि हड़प्पा सभ्यता का उद्गम तथा विनाश सरस्वती नदी के किनारे हुआ होगा !
सामाजिक जीवन
आर्य पहले छोटे-छोटे कबीलों में बसे था ! कबीले छोटी-छोटी इकाइयों में बँटे थे जिन्हे 'ग्राम' कहते थे ! प्रत्येक ग्राम में कई परिवार बसते थे ! इस समय संयुक्त परिवार हुआ करते थे एवं परिवार का सबसे वृद्ध व्यक्ति मुखिया हुआ करता था !समाप मुख्यत: चार वर्णों में बंटा था ! ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य ओर शूद्र ! यह वर्गीकरण लोगों के कर्म (कार्यों) पर आधारित था न कि जन्म पर ! गुरूओं और शिक्षकों को ब्राह्मण, शासक और प्रशासकों का क्षत्रिय, किसानों, व्यापारियों और साहूकारों को वैश्य तथा दस्तकारों और मजदूरों को शूद्र कहा जाता था ! लेकिन बाद में व्यवसाय पैतृक होते चले गए और एक व्यवसाय से जुड़े लोगों को एक जाति के रूप में वर्ण-व्यवस्था कठोर बनती गई ! एक वर्ण से दूसरे में जाना कठिन हो गया !
समाज की आधारभूत इकाई परिवार थी ! बाल विवाह नहीं होते थे ! युवक एवं युवतियाँ अपनी पसंद से विवाह कर सकते थे ! सभी सामाजिक और धार्मिक अवसरों पर पत्नी पति की सहभागिनी होती थी ! महिलाओं का सम्मान था और कुछ को तो ऋषि का दर्जा भी प्राप्त था ! पिता की संपत्त्िा में उसकी सभी संतानों का हिस्सा होता था ! भूमि पर व्यक्तियों तथा समाज का स्वामित्व था ! मुख्यत: चारे वाली भूमि, जंगल तथा जलाशयों जैसे तालाब और नदियों पर समाज का स्वामित्व होता था जिसका अभिप्राय था कि गाँव के सभी लोग उनका उपयोग कर सकें !
खान-पान
वैदिक काल में आजकल के सभी अनाजों की खेती की जाती थी ! इसी प्रकार आर्यों को सभी पशुओं की जानकारी भी थी ! लोग चावल, गेहूँ के आटे तथा दालों से बने पकवान खाते थे ! दूध, मक्खन और घी का प्रयोग आम था ! फल, सब्जियाँ, दालें और मांस भी भोजन में सम्मिलित थे ! वे मधु तथा नशीला पेय सुरा भी पीते थे ! धार्मिक उत्सवों पर मोम पान किया जाता था ! मोम और सुरा पीने को हतोत्साहित किया जाता था क्योंकि यह व्यक्ति के अशोभनीय व्यावहार का कारण बनते थे !आर्थिक जीवन
वैदिक काल के लोगों का आर्थिक जीवन कृषि, कला, हस्तशिल्प और व्यापार पर केंद्रित था ! बैलों और सांडों का खेती करने एवं गाडियाँ खींचने के लिए उपयोग किया जाता था ! रथ खींचने के लिए घोड़ों का उपयोग किया जाता था ! पशुओं में गाय को सर्वाधिक महत्वपूर्ण एवं पवित्र स्थान दिया जाता था !वैदिक काल में गाय को चोट पहुँचाना अथवा उसकी हत्या करना वर्जित था ! गाय को अघ्न्य (जिसे न तो मारा जा सकता है और न ही चोट पहुँचाई जा सकती है ) कहा जाता था ! कहा जाता था वेदों में गौहत्या अथवा गाय को चोट पहुँचाने पर परिस्थिति अनुसार देश निकाला अथवा मृत्यू-दण्ड देने का प्रावधान है !प्रारंभिक काल में बर्तन बनाना, कपड़ा बुनना, धातु कर्म, बढ़ई का काम इत्यादि व्यवसाय थे ! प्रारंभिक काल में धातुओं में केवल ताँबा धातु की ही जानकारी थी ! दूर-दूर तक व्यापार होता था ! वेदों में समुद्री मार्ग से व्यापार कीर चर्चा आती है ! बाद के काल में हमें अन्य कई व्यवसायों, जैसे गहने बनाना, रंगरेजी, रथ बनाना, तीर-कमान बनाना तथा धातु पिघलाने आदि की जानकारी मिलती है ! हस्तशिल्पियों की श्रेणियाँ (संघ) भी बनीं और उनके मुखिया को श्रेष्ठी कहा जाता था ! बाद के काल में लोहे की जानकारी होने के बाद ताँबा लोहित अयस और लोहा श्याम अयस के नामों से जाना जाने लगा !
प्रारंभिक काल में लोग स्वेच्छा से राजा को उसकी सेवाओं के फलस्वरूप उपहार के रूप में बलि (ऐच्छिक उपहार) दिया करते थे जो बाद में एक नियमित कर बन गया जिसे शुल्क कहा जाता था ! उस समय उपयोग किए जाने वाले सिक्कों को निष्क कहा जाता था !
धर्म और दर्शन
ऋग्वेद काल के लोग प्रकृति की शक्ति दर्शाने वाले बहुत देवताओं की पूजा करते थे जैसे- अग्नि, सूर्य, वायु, आकाश और वृक्ष ! इनकी पूजा आज भी होती है ! हड़प्पा सभ्यता में हम कई वस्तुओं जैसे पीपल, सप्तमातृकाओं और शिवलिंगों का चित्रण पाते हैं जिन पर हिंदू आज भी श्रद्घा रखते हैं ! अग्नि, वात और सूर्य से समाज की रक्षा के लिए प्रार्थना की जाती थी ! इंद्र, अग्नि, और वरुण सबसे अधिक मान्य देवता थे ! यज्ञ एक जाना-माना धार्मिक कृत्य था ! कभी-कभी बड़े विशाल यज्ञों का आयोजन किया जाता था जिसमें बहुतसे पुरोहितों की आवश्कता होती थी !उत्तर वैदिक काल में कर्मकांड और यज्ञ के साथ साथ ज्ञान मार्ग को महत्व दिया गया ! ज्ञान मार्गी चिंतकों (दर्शनिकों) द्वारा जिन प्रश्नों पर चर्चा की गई हे वे हैं- ईश्वर क्या है ? ईश्वर कौन है ? जीवन क्या है ? संसार क्या है ? मृत्यु के पश्चात मनुष्य कहाँ जाता है ? आत्मा क्या है ? इत्यादि ! दार्शनिकों के चिंतन को उनके निकट बैठने वाले शिष्यों ने कंठस्थ किया और बाद में उन्हें लिपिबद्ध किया गया ! ये ग्रंथ 'उपनिषद' कहलाये ! उपनिषद भारतीय दर्शनशास्त्र के प्रमुख ग्रंथ है ! इन्हें वेदों के अंग माना जाता है !
विज्ञान
वेद, ब्राह्मण और उपनिषद् इस समय के विज्ञान के विषय में पर्याप्त जानकारी देते हैं ! गणित की सभी शाखाओं को सामान्यत: गणित नाम से ही जाना जाता था जिसमें अंकगणित, रेखागणित, बीजगणित, खगोल विद्या और ज्योतिष सम्मिलित थे !वैदिक काल के लोग त्रिभुज के बराबर क्षेत्रफल का वर्ग बनाना जानते थे ! वे वृत्त के क्षेत्रफलों के वर्गों के योग और अंतर के बराबर का वर्ग भी हबनाना जानते थे ! शून्य का ज्ञान था और इसी कारण बड़ी संख्याएँ दर्ज की जा सकीं ! इसके साथ ही प्रत्येक अंक के स्थानीयमान और मूल मान की जानकारी भी थी ! उन्हें घन, घनमूल, वर्ग और वर्गमूल की जानकारी थी और उनका उपयोग किया जाता था !
वैदिक काल में खगोल विद्या अत्यधिक विकसित थी ! वे आकाशीय पिंडों की गति के विषय में जानते थे और विभिन्न समय पर उनकी स्थिति की गणना भी करते थे ! इससे उन्हें सही पंचांग बनाने तथा सूर्य एवं चंद्रग्रहण का समय बताने में सहायता मिलती थी ! वे यह जानते थे कि पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है और सूर्य के चारों ओर परिक्रमा करती है ! चाँद, पृथ्वी के इर्द-गिर्द घूमता है ! उन्होंने पिंडों के घूर्णन का समय ज्ञात करने तथा आकाशिय पिंडों के बीच की दूरियाँ मापने के प्रयास भी किए !
वैदिक सभ्यता काफी उन्नत प्रतीत होती है ! लोग नगरों, प्राचीर से घिरे नगरों (पुरों) तथा गाँवों में रहते थे ! वे दूर-दराज तक व्यापार करते थे ! विज्ञान पढ़ा जाता था और विज्ञान की विभिन्न शाखाएँ अत्यधिक विकसित थीं ! उन्होंने सही पंचांग बनाए और चंद्र एवं सूर्य ग्रहणों के समय की पूर्व सूचना दी ! आज भी हम उनकी विधि से गणना कर ग्रहण का समय ज्ञात कर सकते हैं !