जनपदों और महाजनपदों का युग
( 600 ई.पू. से 400 ई.पू. )
- जनपद एवं महाजनपद से क्या आशय है !
- मगध सम्राज्य की स्थापना कैसे हुई थी !
- मगध साम्राज्य की आर्थिक, राजनैतिक, सामाजिक एवं धार्मिक परिस्थितियाँ कैसी थीं !
- महावीर स्वामी और गौतम बुद्ध की मुख्य शिक्षाएँ क्या हैं !
पिछले पोस्ट में आपने पढ़ा कि आर्य लोग किस प्रकार नदियों के उपजाऊ मैदान में निवास करते थे ! वे धीरे-धीरे सिन्धु, झेलम, सतलज, व्यास तथा सरस्वती नदियों की घाटियों, मैदानों से आगे बढ़े ! वे गंगा के उपजाऊ प्रदेश में बसने लगे ! जंगलों को साफ कर उन्होंने खेती के लिए जमीन तैयार की ! वहाँ जनपद बसाये ! जनपद का मतलब है 'मनुष्य के बसने का एक क्षेत्र !' इन जनपदों के नामकरण उनके स्थापना करने वाले जन या कुल पर थे ! महाभारत में अनेक जनपदों का उल्लेख है ! भगवान बुद्ध के पूर्व सोलह महा जनपद अंग, मगध, काशी, कौशल, वज्जि, मत्स्य, शूरसेन, अश्मक, अवंति, चेदी, गंधार, कम्बोज आदि थे ! अवंति महाजनपद के दो भाग थे ! उत्तरीभाग की राजधानी उज्जयिनी और दक्षिण भाग की राजधानी महिष्मती (मान्धाता) ! चेदि आधुनिक बुंदेलखंड है इसकी राजधानी शक्तिमती थी !
बड़े एवं शक्तिशाली जनपदों को महाजनपद कहा जाता था ! इनके अधीनस्थ कुछ छोटे जनपद होते थे !
आज के मध्यप्रदेश के क्षेत्र में अवंति एवं चेदि जनपद थे ! उस समय के चार शक्तिशाली महाजनपदों में से एक जनपद 'अवंति' मध्यप्रदेश में था यहां का राजा चण्ड प्रद्योत था ! उसकी बेटी वासवदत्ता थी जिसका विवाह काशी के राजा उदयन से हुआ था ! आज भी ''उदयन-वासदत्ता'' की कहानियां प्रचलित हैं !
इसी काल में बहुत से ऐसे राज्य थे जहाँ वंशगत राजा नहीं थे ! इन राज्यों को गणसंघ कहा जाता था ! गणसंघों में जनपदों व महाजनपदों की तरह राजा या सम्राट का पद वंशानुगत नहीं होता था ! यहाँ राज्य के राजा के जनता चुनती थी जैसे कि आज हम अपनी सरकार चुनते हैं ! इस गणसंघों में कुछ थे- मिथिला के वज्जि, कपिलवस्तु के शाक्य और पावा के मल्ल !
- जनपदों के नामकरण उनके संस्थापक जन या कुल के नाम पर किये गये थे !
- अधिकांश महाजनपद विन्ध्य के उत्तर में थे और पश्चिमोत्तर सीमा प्रान्त से बिहार तक फैले हुए थे !
- जनपदों एवं महाजनपदों में राजा का पद वंशानुगत होता था, जबकि गणसंघों में राजा को जनता चुनती थी !
विभिन्न जनपदों, महाजनपदों तथा गणसंघों के लोगों के बीच वैवाहिक संबंध थे ! वैवाहिक संबंधों के बाद भी इन जनपदों, महाजनपदों व गणसंघों के बीच साम्राज्य विस्तार को लेकर युद्ध होते रहते थे ! धीरे-धीरे सोलह महाजनपदों में से चार शक्तिशाली महाजनपद बने ! ये थे- अवन्ति, मगध, कौशल तथा वत्स ! अपनी शक्ति बढ़ाने और सीमाओं का विस्तार करने के लिये मगध सदैव युद्धरत रहा ! परिणाम स्वरूप वह सभी जनपदों तथा महाजनपदों में सर्वशक्तिमान बन गया !
मगध साम्राज्य की स्थापना एवं विस्तार (लगभग 544 ई.पू. से 430 ई.पू. तक)
सोलह जनपदों में मगध जनपद सबसे शक्तिशाली था ! मगध को एक बड़े साम्राज्य के रूप में विकसित करने का पहला चरण हर्यंकवंश के राजा बिंबिसार के नेतृत्व में पूरा हुआ ! उसने अंग को जीतकर अपने राज्य में मिला लिया !
इसके अलावा उसने वैवाहिक संबंधों के माध्यम से अन्य राज्यों से मधुर संबंध बनाये ! इसके अंतर्गत कोशल, वैशाली तथा मद्रकुल (पंजाब) तक राजनैतिक प्रतिष्ठा को बढ़ाया ! वह अवन्ति महाजनपद को जीत न सका, तो उसने वहाँ के शासक चण्डप्रद्योत से मित्रता कर ली और मगध को (ईसा पूर्व छठी शताब्दी में) सबसे अधिक शक्तिशाली राज्य बना दिया ! उसकी राजधानी राजगीर थी ! उस समय इसे गिरब्रज कहते थे ! जीवक इसका राजवैद्य था !
अपने पिता बिम्बिसार का बध करके अजातशत्रु ने मगध का सिंहासन संभाला ! अजातशत्रु ने शासन विस्तार में आक्रामक नीति से काम लिया ! उसने पिता की रिश्तेदारी का कोई लिहाज न रखा ! उसने युद्धों के दौरान, नये युद्ध यंत्रों का इस्तेमाल किया ! उसकी सेना के पास पत्थर फेंकने वाला 'महासिलाकटंक' एक यंत्र था उसके पास एक ऐसा रथ था, जिसमें गदा जैसा हथियार जुड़ा हुआ था ! इससे युद्ध में लोगों को बड़ी संख्या में मारा जा सकता था ! इस यंत्र को रथमूसल कहा जाता था !
अजातशत्रु के बाद उदयन मगध की गद्दी पर बैठा ! इसके काल में मगध का साम्राज्य उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में छोटा नागपुर की पहाडियों तक फैला हुआ था ! उसने गंगा और सोन नदी के संगम पर पाटलिपुत्र (पटना) को अपनी राजधानी बनाया !
मगध के सम्राटों का सबसे बड़ा शत्रु अवन्ति महाजनपद था ! अवन्ति, उज्जैन का प्राचीन नाम है जो वर्तमान में मध्यप्रदेश का एक प्रमुख नगर है ! उदयन और अवन्ति राज के बीच भी संघर्ष चला परन्तु अवन्ति महाजनपद की स्वतंत्रता बनी रही ! बाद में शिशुनागवंश के राजाओं ने इसे जीत कर अपने साम्राज्य में मिला लिया गया ! मगध साम्राज्य के विस्तार एवं उन्नति के निम्न कारण थे-
- इस क्षेत्र की भूमि उपजाऊ थी जिससे फसलों का अधिक उत्पादन होता था !
- मगध क्षेत्र में अत्यधिक लोहे के भण्डारों के कारण मगध की सेना ने उन्नत हथियार और औजारों का उपयोग किया !
- गंगा नदी में नौकाओं से व्यापार होता था अत: बंदरगाहों से व्यापारी काफी दूर-दूर तक आते-जाते थे !
- मगध सम्राटों की दोनों राजधानियां- राजगीर तथा पाटलिपुत्र अत्यधिक सुरक्षित थी !
- मगध की सेना के पास नये युद्ध यंत्र थे अन्य सेनाओं के पास न थे !
- मगध सम्राटों के पास हाथियों की सबसे बड़ी सेना थी ! पुराने जमाने में गजसेना को महत्वपूर्ण माना जाता था !
शिशुनाग वंश
शिशुनाग, काशी प्रदेश का शासक था ! उसने उदयन के पुत्र नागदासक को सिंहासन से हटाकर अपने वंश की स्थापना की तथा वैशाली को अपनी राजधानी बनाया ! उसकी सबसे बड़ी सफलता अवन्ति (उज्जैन) के शासक को पराजित करने में थी ! उज्जैन पर कब्जा करने में मगध को लगभग सौ साल का समय लगा ! अब अवंति का क्षेत्र मगध साम्राज्य में मिल गया था !
नन्द वंश (लगभग ईसा पूर्व 363-342)
नन्द वंश का संस्थापक नन्द/नन्दिवर्धन था ! पुराणों में इसे उग्रसेन भी कहा गया है ! वह बड़ा योगय, साहसी और प्रसिद्ध महत्वाकांक्षी साम्राज्यवादी सम्राज्यवादी सम्राट था ! उसने मगध साम्राज्य का खूब विस्तार किया ! उसके राजकोष में अपार धन-राशि होने के कारण उसे 'महापद्म' नंद भी कहते थे !
नन्द वंश के शासनकाल में ही सिकन्दर का भारत पर आक्रमण हुआ ! सिकन्दर मकदूनिया (ग्रीस) का राजा था ! वह विश्व विजय करना चाहता था ! पश्चिमोत्तर सीमा से सिंधु नदी पार करके उसने भारत पर आक्रमण किया (ई.पू. 326) पंजाब के कुछ भाग पर उसने विजय प्राप्त की, किन्तु मगध के सम्राट की शक्ति के विषय में सुनकर उसकी सेना ने आगे बढ़ने से इन्कार कर दिया ! व्यास नदी के तट से ही सिकन्दर वापस लौट गया ! जिन क्षेत्रों को उसने जीता था, वहाँ के प्रशासन के लिये उसने अपने प्रतिनिधि नियुक्त कर दिये !
सिकन्दर के आक्रमण के परिमाण महत्वपूर्ण सिद्ध हुए ! इस घटना के कारण भारत और यूनान के बीच सीधा संपर्क स्थापित हो गया ! परस्पर व्यापार बढ़ा ! सिकन्दर के साथ आये यात्रियों ने महत्वपूर्ण भौगोलिक वर्णन किया है ! उन्होंने सिकन्दर के अभिमान का तिथि सहित वर्णन किया जिससे हमें बाद की घटनाओं को भारतीय कालक्रम को निश्चित आधार पर तैयार करने में सहायता मिलती है ! नन्द की विशाल सेना में लगभग 20000 घुड़सवार सैनिक, 200000 पैदल सैनिक, 2000 रथ और लगभग 4000 हाथी थे ! भारी संख्या में हाथी रखने के कारण ही मगध के राजा अधिक शक्तिशाली माने जाते थे ! नन्द वंश के अंतिम शासक घनानंद का वध करके चन्द्रगुप्त ने मौर्य साम्राज्य की नींव डाली !
राजनैतिक व प्रशासनिक जीवन शैली
इस काल में राजा का पद बहुत शाक्तिशाली हो गया था ! वह अपने राज्य का प्रशासन आमात्य (मंत्री), पुरोहित (धर्मगुरू), संग्रहत्री (कोषाध्यक्ष), बलिसाधक (कर वसूलने वाले), शौल्किक (चुंगी वसूलने वाले), सेनापति ग्रामीण आदि के द्वारा चलाता था ! उसे परामर्श देने के लिए परिषद होती थी जिसके सदस्य ब्राह्मण रहते थे ! योद्धा और पूरोहित कर से मुक्त होते थे ! राजा किसानों से उनकी उपज का छठा भाग कर के रूप में प्राप्त करता था ! व्यापारियों से माल की बिक्री पर चुंगी वसूली जाती थी ! इस काल के सिक्के पर्याप्त मात्रा में मिलते हैं ! ये प्राय: ताम्बे तथा चांदी के होते थे ! इन्हें आहत या ठप्पे लगे (पंचमार्क) सिक्के कहते हैं !
कस्बों को पुर, नगर तथा बड़े कस्बों को महानगर कहते थे ! उज्जयिनी, श्रावस्ती, आयोध्या, काशी, कौशाम्बी, चंपा, राजगीर, वैशाली, प्रतिष्ठान, भृगुकच्छ प्रमुख नगर थे ! मकान मिट्टी तथा पक्की ईटों के होते थे ! नगर के चारों तरफ प्राचीर और विशाल प्रवेश द्वार होते थे !
सामाजिक एवं धार्मिक जीवन
समाज में मुख्यत: चार वर्ण थे, परन्तु इस काल में अनेक जातियों का उदय होता भी दिखाई पड़ता है ! बढ़ई, लुहार, सुनार, तेली, शराब बनाने वाले आदि जातियां बन गयी थीं ! जाति जन्म से ही जानी जाती थी ! कलाकारों और शिल्पकारों को संगठित किया गया ! एक ही पेशे से जुड़े लोगों के संगठन को श्रेणी कहा जाता था !
धार्मिक कर्मकाण्ड और खर्चीले यज्ञों से लोग विमुख हो रहे थे ! दो नये धर्मों का उदय हुआ था इनमें से एक बौद्ध धर्म है और दूसरा है जैन धर्म !
वर्धमान महावीर
महावीर का जन्म वैशाली गणराज्य में हुआ था ! वर्धमान महावीर जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर थे ! सत्य की खोज में उन्होंने 30 वर्ष की उम्र में ही घर छोड़ दिया ! लगभग 12 वर्षों की साधना के बाद उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ ! ज्ञान प्राप्ति के बाद लगभग 30 वर्षों तक अपने उपदेशों का प्रचार करते रहे ! अंत में लगभग 527 ई.पू. (पावापुरी) में 72 वर्ष की आयु में वर्धमान महावीर को मोक्ष प्राप्त हुआ !
महावीर स्वामी की मुख्य शिक्षा
- हिंसा कभी नहीं करनी चाहिए !
- सत्य का पालन करना चाहिए !
- चोरी नहीं करना चाहिए !
- संग्रह नहीं करना चाहिए !
- ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए !
गौतम बुद्ध
गौतम बुद्ध के बचपन का नाम सिद्धार्थ था ! नेपाल के तराई क्षेत्र में, लुंबिनी वन नामक स्थान पर इनका जन्म हुआ ! बचपन से ही गौतम का मन ध्यान और अध्यात्मिक चिन्तन की ओर था ! 29 वर्ष की उम्र में ये घर से ज्ञान प्राप्त करने के लिए निकल पड़े ! लगभग सात वर्षों तक भ्रमण के बाद बोध गया स्थान में, एक पीपल के वृक्ष के नीचे उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ ! तब से वे बुद्ध अर्थात प्रज्ञावान कहलाने लगे ! ज्ञान प्राप्ति के बाद बुद्ध ने अनेक वर्षों तक अपने सिद्धांतों का प्रचार किया ! 483 ई.पू. वैशाख पूर्णिमा को कुशीनगर में बुद्ध का महापरिनिर्वाण हुआ ! बुद्ध की शिक्षाएँ इस प्रकार से हैं-
- दुख का कारण तष्णा है, तृष्णा से मुक्त होकर ही निर्वाण प्राप्त किया जा सकता है !
- अष्टांगिक मार्ग का पालन करने से दु:ख दूर हो सकते हैं !
- मनुष्य को पांच नैतिक नियम अपनाने चाहिए-
- चोरी नहीं करनी चाहिए !
- झूठ नहीं बोलना चाहिए !
- मादक द्रव्यों का सेवन नहीं करना चाहिए !
- व्याभिचार नहीं करना चाहिए !
- किसी प्राणी की हत्या नहीं करनी चाहिए !
आगे चलकर इन दोनों धर्मों ने बहुत उन्नति की ! बौद्ध धर्म एशिया के विभिन्न देशों में पहुँच गया ! जैन धर्म का भारत के विभिन्न क्षेत्रों में व्यापक प्रचार-प्रसार हुआ !
3 comments
कुछ थे- मिथिला के वज्जि, कपिलवस्तु के शाक्य और पावा के मल्ल !
ReplyPawa kon si jagh hai
कुछ थे- मिथिला के वज्जि, कपिलवस्तु के शाक्य और पावा के मल्ल ! Please reply
Replyहमारे पोस्ट पर कम्मेंट करने के लिए धन्यवाद ।
Replyयहां पर इसके अंतरगत वज्जि का अर्थ महासंघ से है ।
और मल्ल एक महाजनपद हुआ करती थी ( मल्ल जनजद को ही महावीर स्वामी और गौतम बुद्ध के द्वारा उनके निर्वाण के लिए चुुुुुना गया था ।