अक्षांश एवं देशान्‍तर रेखाएं - पृथ्‍वी अपने अक्ष पर 231/2° झुकी हुई है - अक्षांश एवं देशान्‍तर रेखाओं की विशेषताएं

अक्षांश एवं देशान्‍तर रेखाएं -  पृथ्‍वी अपने अक्ष पर 231/2° झुकी हुई है - अक्षांश एवं देशान्‍तर रेखाओं की विशेषताएं

अक्षांश एवं देशान्‍तर रेखाएं

  • अक्षांश व देशान्‍तर रेखाएं क्‍या है, व उनकी विशेषताएँ कौन-कौन सी है ?
  • अक्षांश व देशान्‍तर रेखाओं की आवश्‍यकता और उपयोगिता क्‍या है ?
  • अक्षांश व देशान्‍तर रेखाओं की सहायता से पृथ्‍वी पर किसी स्‍थान की स्थिति कैसे ज्ञान करते हैं ?



    ग्‍लोब और मानचित्र पर बहुत सी रेखाएं खिंची होती है ! कुछ रेखाएं खड़ी होती है और कुछ आड़ी ! ये रेखाएं एक-दूसरे को काटती भी है, और ग्‍लोब पर जाल सा बनाती है ! वास्‍तव में ये रेखाएं काल्‍पनिक है ! पृथ्‍वी पर ऐसी कोई रेखाएं खिचीं हुई नहीं हैं ! पृथ्‍वी पर किसी स्‍थान की ठीक-ठीक स्थिति दर्शाने के लिए ये रेखाएं ग्‍लोब एवं मानचित्र पर खींची गयी हैं ! इन रेखाओं की मदद से हम किसी गांव, नगर, देश या किसी स्‍थान की भौगोलिक स्थिति को आसानी से जान सकते हैं ! रेखाओं के इस जाल को समझने के लिए हमें ग्‍लोब पर दो बिन्‍दूओं को देखना होगा ! एक बिन्‍दू ग्‍लोब के ठीक ऊपर की ओर होता है ! जिसे हम उत्तरी ध्रुव कहते हैं और दूसरा एकदम नीचे की ओर होता है जिसे दक्षिणी ध्रुव कहते हैं ! यदि हम ग्‍लोब को ध्‍यान से देखें तो हमें इन दोनों ध्रुवों के बीचों बीच एक वृत खींचा हुआ दिखाई  देता है ! जिसे भूमध्‍य रेख या विषुवत वृत्‍त कहते हैं ! यह वृत्त पृथ्‍वी को दो बराबर भागों में बांटता है ! इस वृत्त के उत्तर वाले भाग को उत्तरी गोलार्द्ध एवं दक्षिण वाले भाग को दक्षिणी गोलाद्ध कहते हैं !

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    अक्षांश रेखाएं- भूमध्‍य रेखा के समानान्‍तर खींचे हुए वृत्तों या आड़ी रेखाओं को अक्षांश वृत्त अथवा अक्षांश रेखाएं कहते हैं ! भूमध्‍य रेखा के केंद्र बिन्‍दु से प्रत्‍येक अंश पर एक-एक वृत्त खींचे गये हैं व उनके सामने उ. एवं द. लिखा जाता है जिसका अर्थ क्रमश: उत्तरी एवं दक्षिणी अक्षांश होता है ! इस तरह 90 अक्षांश उत्तरी गोलार्द्ध में और 90 अक्षांश दक्षिणी गोलार्द्ध में खींचे है ! इस प्रकार कुल 180 अक्षांश वृत्त या रेखाएं ग्‍लोब पर खींची गयी है ! ग्‍लोब पर खिंचे हुए सभी वृत्तों में विषुवत वृत्त या विषुवत रेखा सबसे बड़ा वृत्त है ! उत्तरी गोलार्द्ध में उत्तरी अक्षांश वृत को कर्क वृत या कर्क रेखा कहते है ! यह वृत हमारे देश के गुजरात, मध्‍यप्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा व मिजोरम आदि राज्‍यों में होकर गुजरता है ! इसी प्रकार दक्षिणी गोलार्द्ध में 231/2° दक्षिणी आक्षंश वृत्त को मकर वृत या मकर रेखा कहते है!
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      • पृथ्‍वी अपने अक्ष पर 231/2° झुकी हुई है, इस कारण पृथ्‍वी पर 231/2° उत्तरी तथा दक्षिणी अक्षांश तक ही सूर्य वर्ष में एक बार सीधा चमकता है ! इस अक्षांश से उत्तरी ध्रुव तथा दक्षिणी ध्रुव तथा सूर्य कभी भी सीधा चमकता है ! इस अक्षांश से उत्तरी ध्रुव तथा दक्षिणी ध्रुव तथा सूर्य कभी भी सीधा नहीं चमकता ! यही कारण है कि कर्क रेखा एवं मकर रेखा का निर्धारण 231/2° पर किया गया है !
      • भूमध्‍य रेखा के समानान्‍तर खीचें हुए वृत्तों या आड़ी रेखाओं को अक्षांश वृत या रेखाएँ कहते हैं ! इनकी कुल संख्‍या 180 है !

        अक्षांश रेखाओं की विशेषताएं :-
        • ये रेखाएं पूर्व से पश्चिम दिशा में विषुवत रेखा के समानान्‍तर खींची जाती है !
        • ये पूर्ण वृत्ताकार होती है !
        • दो अक्षांशों के बीच की दूरी समान होती है !
        • विषुवत वृत्त से ध्रुवों की ओर बढ़ने पर वृत्त छोटे होते जाते हैं ! ध्रुव एक बिंदु के रूप में रह जाता है !
        • अक्षांश रेखाओं की लंबाई समान नहीं होती है !
        • भूमध्‍य रेखा के उत्तरी क्षेत्र को उत्तरी गोलार्द्ध व दक्षिणी गोलार्द्ध कहते हैं !



                देशान्‍तर रेखाएं :-

                किसी भी स्‍थान की सही स्थिति का पता लगाने के लिए हमें अक्षांश वृत्तों के अलावा कुछ खड़ी रेखाओं का भी सहारा लेना पड़ता है ! ये रेखाएँ ग्‍लोब या मानचित्र पर उत्तरी तथा दक्षिणी ध्रुव को जोड़ती हैं ! उत्तर से दक्षिण खींची रेखाओं को देशान्‍तर रेखा कहते हैं ! ग्‍लोब पर ये रेखाएं उत्तर से दक्षिण की ओर अर्ध वृत्त होती है जबकि मानचित्रों में उत्तर से दक्षिण में सीधी खींची होती है !
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                मुख्‍य अक्षांश रेखा (0° भूमध्‍य रेखा) की तरह ही देशान्‍तर रेखाओं में भी एक रेखा को प्रधान देशान्‍तर रेखा माना जाता है ! यह रेखा इंग्‍लैंड में लंदन के पास स्थित ग्रीनविच वेधशाला से गुजरती है ! इसे ही 0° प्रधान मध्‍यान्‍ह रेखा कहते हैं ! अन्‍य देशान्‍तर रेखाएँ प्रधान मध्‍यान्‍ह रेखा के पूर्व और पश्चिम में खींची गई हैं ! प्रधान मध्‍यान्‍ह रेखा पृथ्‍वी को पूर्वी व पश्चिमी गोलार्द्ध में बांटती है ! प्रधान मध्‍यान्‍ह रेखा के दोनों ओर 1° के अंतराल पर खींची गई 180 देशांतर रेखाएँ हैं ! किसी भी प्रकार के भ्रम से बचने के लिए पूर्वी गोलार्द्ध और पश्र्चिमी गोलार्द्ध की देशांतर रेखाओं के साथ क्रमश: 'पू.' तथा 'प.' शब्‍द लिखा जाता है ! जिसका अर्थ क्रमश: पूर्वी तथा पश्चिमी होता है !


                देशान्‍तर रेखाओं की विशेषताएं-
                • देशान्‍तर रेखाएं अर्द्धवृत्त होती हैं !
                • इनकी लंबाई समान होती हैं !
                • विषुवत वृत्त पर इनके बीच की दूरी सबसे अधिक होती है, लेकिन जैसे-जैसे हम ध्रुवों की ओर जाते हैं तो देशान्‍तर रेखाओं के बीच की दूरी कम होती जाती हैं !
                • ये रेखाएं प्रधान मध्‍यान्‍ह रेखा के दोनों ओर 1° के अंतराल पर खींची गई हैं ! इनकी कुल संख्‍या 360 हैं !
                • पृथ्‍वी पर किसी स्‍थान की ठीक-ठीक स्थिति दर्शाने के लिए अक्षांश और देशांतर रेखएं, ग्‍लोब एवं मानचित्र पर खींची गयी है ! इनकी सहायता से हम पृथ्‍वी पर किसी भी स्‍थान की भौगोलिक स्थिति को जान सकते हैं ! ये काल्‍पनिक रेखाएं हैं !

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                ग्‍लोब और मानचित्र - ग्‍लोब का उपयोग - मानचित्र की आवश्‍यकता - मानचित्र को कैसे पढ़ें ? -

                ग्‍लोब और मानचित्र - ग्‍लोब का उपयोग - मानचित्र की आवश्‍यकता - मानचित्र को कैसे पढ़ें ? -

                ग्‍लोब और मानचित्र

                • पृथ्‍वी के प्रतिरूप के रूप में ग्‍लोब को !
                • भूगोल में ग्‍लोब के महत्‍व को !
                • ग्‍लोब के उपयोग को !
                • मानचित्र की आवश्‍यकता व महत्‍व !
                • मानचित्र को पढ़ना !
                ब्रह्माण्‍ड में हमारी पृथ्‍वी ही एकमात्र ऐसा ग्रह है, जिस पर जीवन है क्‍योंकि पृथ्‍वी पर जल और वायु दोनों विद्यमान है ! क्‍या आप जानते हो कि पृथ्‍वी का आकार कैसा है? पृथ्‍वी को यदि हम सामान्‍य रूप से देखें तो इसे दूर-दूर तक सपाट रूप में ही देख पाते हैं ! पृथ्‍वी बहुत विशाल है ! इसलिए इतनी बड़ी पृथ्‍वी को हम पृथ्‍वी से ही एक साथ नहीं देख पाते हैं ! लेकिन यदि अंतरिक्ष से पृथ्‍वी को देखें, तो पृथ्‍वी की आकृति या आकार गोलाकार है !
                'ग्‍लोब' पृथ्‍वी का एक नमूना अर्थात पृथ्‍वी जैसी आकृति का एक मॉडल है, जो पृथ्‍वी की आकृति का सही-सही प्रतिनिधित्‍व करता है ! ग्‍लोब की सहायता से हम ठीक तरह से जान पाते हैं कि पृथ्‍वी की आकृति गोलाकार है !
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                भूगोल में ग्‍लोब का बहुत महत्‍व है क्‍योंकि इसकी मदद से ही हम पृथ्‍वी के आकार, उसके झुकाव, उसकी गति को समझ पाते हें और उससे जुड़ी घटनाओं को समझने का प्रयास करते हैं ! इसके साथ ही हम पृथ्‍वी पर जल और थल के वितरण अर्थात महासागरों और महाद्वीपों के विस्‍तार व पृथ्‍वी पर उनकी स्थिति को देख व समझ पाते हैं !

                ग्‍लोब का उपयोग- ग्‍लोब को ध्‍यान से देखते हुए हम निम्‍न बातें जान सकते हैं-
                • पृथ्‍वी का आकार गोलाकार है !
                • पृथ्‍वी अपने अक्ष पर सीधी नहीं है बल्कि कुछ झुकी (231/2 डिग्री) हुई है !
                • पृथ्‍वी ध्रवों पर थोड़ी चपटी है !
                • पृथ्‍वी का अपनी धुरी(कील) पर घूमना !
                • ग्‍लोब पर खीचीं आड़ी व खड़ी रेखाओं की विशेषताएं !
                • ग्‍लोब पर कई रंग दिखाई पड़ते हैं जिसमें नीला रंग सबसे नीला रंग सबसे ज्‍यादा दिखाई देता है ! जो जल भाग को दर्शाता है !
                • पृथ्‍वी पर महाद्वीप, महासागर, द्वीप, प्रमुख पर्वत, देशों इत्‍यादि की स्थिति को जान जाते हैं !
                • पृथ्‍वी पर दिन-रात का होना !

                1. ग्‍लोब : ग्‍लोब पृथ्‍वी का एक नमूना है, जो पृथ्‍वी की आकृति का सही-सही प्रतिनिधित्‍व करता है !
                2. महाद्वीप : पृथ्‍वी के बड़े भू-भाग जिसमें कई देश होते हैं, उसे महाद्वीप कहते हैं ! पृथ्‍वी पर 7 महा‍द्वीप है !
                3. महासागर : पृथ्‍वी पर फैले विशाल जल भाग को महासागर कहते हैं ! पृथ्‍वी पर प्रमुख 4 महासागर है !

                मानचित्र की आवश्‍यकता


                जब तक हम पूरी पृथ्‍वी की बात करते हैं तब तक ग्‍लोब हमारे लिए बहुत उपयोगी होता है ! लेकिन ग्‍लोब के उपयोग की कुछ सीमाएं भी हैं ! जब हम पृथ्‍वी के किसी स्‍थान विशेष या छोटे भाग का अध्‍ययन करना चाहे जैसे देश, जिले, शहर या गांव की जानकारी प्राप्‍त करना चाहें तब हमें मानचित्र की आवश्‍यकता पड़ती है क्‍योंकि मानचित्र की सहायता से हम किसी भी भू-भाग का भलीभंति पठन-पाठन कर सकते हैं ! इस प्रकार- गोलाकार पृथ्‍वी अथवा उसके किसी भू-भाग का मापन के अनुसार समतल सतह पर चित्रण मानचित्र कहलाता है !

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                मानचित्र शब्‍द की उत्‍पत्ति लेटिन भाषा के शब्‍द 'मेप्‍पा' से हुर्ई है ! जिसका शाब्दिक अर्थ है मेजपोश या रूमाल ! मध्‍यकाल में संसार का चित्र कपड़े पर बनाये जाते थे ! अंग्रेजी भाषा का 'मेप' शब्‍द लेटिन भाषा मेप्‍पा का ही अपभ्रंश है ! अंग्रजी शब्‍द मेप को हिन्‍दी में मानचित्र कहते हैं !
                इसी तरह संसार के विभिन्‍न छोटे-छोटे भागों के मानचित्र भी होते हैं ! किसी गांव या शहर के एक छोटे हिस्‍से का भी मानचित्र होता है जैसे आप अपने गांव के मानचित्र को पटवारी के पास देख सकते है !

                मानचित्र को कैसे पढ़ें ?


                जिस तरह हम पुस्‍तक पढ़ते हैं ! पुस्‍तकों को पढ़कर अनेक जानकारी प्राप्‍त करते हैं ! ठीक उसी तरह मानचित्र को पढ़ा व समझा जाता है ! मानचित्र मुख्‍यत: चार बिंदुओं के आधार पर पढ़ा व बनाया जा सकता है- शीर्षक, दिशा, रुढ़चिह्न और मापक ! मानचित्र इस प्रकार बनाया जाता है जैसे हम पृथ्‍वी या उसके उस हिस्‍से को, जिसका मानचित्र बना रहे हैं, ऊपर से देख रहे हैं !

                शीर्षक- प्रत्‍येक मानचित्र का एक शीर्षक होता है, जो यह बताता है कि मानचित्र विश्‍व या विश्‍व के किस भू-भाग का है ! उपर्युक्‍त मानचित्र का शीर्षक 'भारत' है अर्थात यह भारत देश का मानचित्र हैं ! सामान्‍यत: शीर्षक मानचित्र के दायीं ओर लिखा होता है !
                दिशा : यह मानचित्र की दूसरी महत्‍वपूर्ण विशेषता है ! प्रत्‍येक मानचित्र में उत्तर दिशा को तीर के चिन्‍ह द्वारा दिखाया जाता है ! दिशा के बिना पढ़ना मुश्किल होता है ! परम्‍परा के अनुसार उत्तर दिशा मानचित्र के ऊपरी हाशिए की ओर इंगित होता है !
                रूढ़चिह्न : मानचित्र में कई विषय वस्‍तुओं, बिंदुओं इत्‍यादि को कुछ पारम्‍परिक चिन्‍हों के द्वारा वर्षों से उपयोग में लाया जाता रहा है ! इन चिन्‍हों को रूढ़ चिन्‍ह कहते हैं !
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                मापक : धरातल की वास्‍तविक दूरी को कागज पर आनूपातिक रूप में छोटा या बड़ी, मापक की सहायता से ही दर्शाया जाता है ! उदाहरण के लिए धरातल की वास्‍तविक दूरी 1 कि.मी. को कागज में दर्शाना हो तो मान सकते  हैं 1से.मी.= 1कि.मी. ! हर मानचित्र में पैमाना (मापक) अलग हो सकता है ! प्रत्‍येक मानचित्र में मापक शीर्षक के नीचे या फिर मानचित्र में नीचे की ओर लिखा जाता है ! इस प्रकार पैमाने के अनुसार मानचित्र में किन्‍हीं दो स्‍थानों की दूरी को मापक से मापकर उन्‍हीं दो स्‍थानों की धरातल पर वास्‍तविक दूरी को जान सकते हैं !



                इसके अलावा मानचित्र में रंगों का उपयोग भी किया जाता है ! जल भाग को नीले रंग से दर्शाया जाता है, पहाड़ी भाग को भूरे रंग से दर्शाया जाता है और मैदान को हरे रंग से दर्शाया जाता है, आदि !


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                सौरमण्‍डल में हमारी पृथ्‍वी - पृथ्‍वी-अनोखा जीवित ग्रह - सूर्य से पृथ्‍वी की दूरी - प्रकाश वर्ष - ब्रह्माण्‍ड - आकाश गंगा - तारे व ग्रह में अंतर

                सौरमण्‍डल में हमारी पृथ्‍वी - पृथ्‍वी-अनोखा जीवित ग्रह - सूर्य से पृथ्‍वी की दूरी - प्रकाश वर्ष -  ब्रह्माण्‍ड -  आकाश गंगा - तारे व ग्रह में अंतर

                सौरमण्‍डल में हमारी पृथ्‍वी

                • सौरमण्‍डल से क्‍या आशय है ?
                • आकाशीय पिण्‍ड एवं आकाश गंगा क्‍या है ?
                • सौरमण्‍डल के विभिन्‍न सदस्‍य एवं उनकी क्‍या स्थिति हैं ?
                • क्‍या सूर्य एक तारा है ?
                • ग्रहों एवं तारों के मध्‍य क्‍या अंतर है ?
                • पृथ्‍वी एक जीवित ग्रह क्‍यों है ?

                सौरमण्‍डल


                सूर्य सहित उसके समस्‍त आकाशीय पिण्‍डों के समूह को सौरमण्‍डल कहते हैं ! जैसा आपने सौरमण्‍डल के चित्र में देखा है ! सौर परिवार में सूर्य के अलावा ग्रह, उपग्रह, क्षुद्रग्रह, धूमकेतू, उल्‍काएं तथा धूल कण सम्मिलित हैं ! इस प्रकार सूर्य का अपना बहुत बड़ा परिवार है ! सौरमण्‍डल के चित्र में सूर्य और अन्‍य ग्रहों के साथ हमारी पृथ्‍वी की स्थिति को दर्शाया गया है ! आइए सौरमण्‍डल के बारे में कूछ महत्‍वपूर्ण जानकारी प्राप्‍त करें.


                सूर्य- यह सौरमण्‍डल का मुखिया है ! यह सौरमण्‍डल के केन्‍द्र में स्थित है ! सभी सदस्‍य ग्रह, उपग्रह, क्षुद्रग्रह, उल्‍काएं और धूमकेतु उसकी परिक्रमा करते हैं ! सभी सदस्‍य सूर्य के प्रकाश से प्रकाशित होते हैं और ऊर्जा प्राप्‍त करते हैं ! सौरमण्‍डल के समस्‍त पदार्थों का लगभग 99 प्रतिशत भाग सूर्य में निहित है ! सूर्य का आकार ही इतना बड़ा है कि ये सब ग्रह मिलकर उसका केवल एक प्रतिशत भाग ढँक पाएंगे !
                इतनी विशालता के कारण ही सूर्य में अपार गुरुत्‍वाकर्षण शक्ति है जिसके कारण सभी ग्रह और उपग्रह निरन्‍तर उसकी परिक्रमा करते रहते हैं ! सूर्य धधकता हुआ एक विशाल महापिण्‍ड है ! यह प्रकाश एवं ऊर्जा का भण्‍डार है ! हमारी पृथ्‍वी सूर्य से प्रकाश और ऊर्जा प्राप्‍त करती है ! सूर्य के प्रकाश के कारण ही पृथ्‍वी पर दिन होता है !



                सूर्य से प्रथ्‍वी की औसत दूरी 15 करोड़ किलोमीटर है ! पृथ्‍वी तक सूर्य की किरणें 8 मिनिट 19 सेकंड में पहुँचती है !

                सूर्य में इतनी विशाल ऊर्जा व प्रकाश कैसे उत्‍पन्न होता है ? वास्‍तव में सूर्य एक विशालकाय परमाणु भट्टी की तरह प्रज्‍ज्‍वलित है ! वैज्ञानिको ने अध्‍ययन कर पता लगाया है कि सूर्य कई ज्‍वलनशील गैसों का जलता हुआ पिंड है जिसमें हाईड्रोजन, हीलियम आदि अनेक गैसें निरंतर जल कर व क्रिया करके ताप एवं प्रकाश करोड़ों वर्षों से उत्‍पन्न करती आ रही है !
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                हाइड्रोजन एवं हीलियम दो ज्‍वलनशील गैसें हैं जो सूर्य के ताप को बढ़ाती है ! अनुमान है कि सूर्य की सतह का तापमान 6000 सेल्सियस तथा केंद्रीय भाग का तापमान 1.5 करोड़ सेल्सियस है !

                ग्रह- ऐसे आकाशीय पिण्‍ड जो अपनी-अपनी कक्षाओं में सूर्य की परिक्रमा करते हैं, ग्रह कहलाते हैं ! प्रत्‍येक ग्रह की परिक्रमा की अवधि अलग-अलग होती है ! जो ग्रह सूर्य से जितना दूर होगा ! उसकी कक्षा उतनी ही बड़ी होगी तथा उसकी परिक्रमा की अवधि भी उतनी ही अधिक होगी ! सूर्य की परिक्रमा के साथ-साथ सभी ग्रह अपने अक्ष पर भी धूर्णन करते हैं ! सभी ग्रह सूर्य से प्रकाश एवं ऊर्जा प्राप्‍त करते हैं ! हमारे सौरमण्‍डल में ग्रहों की संख्‍या 8 है ! सूर्य से दूरी के क्रम के अनुसार उनके नाम हैं- बुध, शुक्र, पृथ्‍वी, मंगल, बृहस्‍पति, शनि, अरुण (युरेनस/हर्षल) और वरुण (नेपच्‍यून) है ! आकार में सबसे बड़ा ग्रह बृहस्‍पति और सबसे छोटा बुध है ! इसी प्रकार सूर्य के सबसे निकट का ग्रह बुध तथा सबसे दूर वरुण है ! प्रत्‍येक ग्रह की जानकारी हम आगे विवरण में जानेंगे,



                • सूर्य(सन)- यह एक तारा है इ‍सकी भौतिक स्थिति में ज्‍वलनशील गैस हाइड्रोजन/हीलियम आदि का जलता हुआ पिंड है इसे ग्रहों का मुखिया भी कहा जाता है !
                • बुध(मरकरी)- यह एक ग्रह है इसकी भौतिक स्थिति के अंर्तगत इसे सूर्योदय से पहले और सूर्यास्‍त के पश्‍चात देखा जा सकता है ! यह सूर्य के सबसे निकट वाला ग्रह है ! बुध ग्रह को सूर्य की परिक्रमा पूरी करने में 88 दिनों पूर्ण कर लेता है ! अत्‍यधिक गर्म होने से इस पर जीवन की कोई संभावना नहीं है !
                • शुक्र(विनस)- यह भी एक ग्रह है इसकी भौतिक स्थिति के अंर्तगत यह आकाश में सबसे ज्‍यादा चमकदार ग्रह है ! यह लगभग पृथ्‍वी के बराबर है ! सौर-मंडल का दूसरे नंबर का सदस्‍य है ! सूर्य की परिक्रमा 225 दिनों में पूरी करता है ! इसका कोई उपग्रह नहीं है ! अत्‍यधिक गर्म होने के कारण इस पर जीवन की कोई संभावना नहीं है !
                • पृथ्‍वी(अर्थ)- यह नीले ग्रह के नाम से जाने जाना वाला अनूठा ग्रह है इस पर समस्‍त लक्षण पाये जाते हैं ! यह सौर परिवार का तीसरा सदस्‍य है ! पृथ्‍वी अपनी परिक्रमा 365 दिन 5 घण्‍टे 48 मिनिट 46 सेकेण्‍ड में पूरा करती है इसका एकमात्र उपग्रह चंद्रमा है !
                • मंगल(मार्स)- यह एक ग्रह है इसे लाल तांबे के रंग का ग्रह है ! यह सौर परिवार का चौथा सदस्‍य है ! मंगल सूर्य की परिक्रमा 687 दिनों में पूरी करता है ! मंगल ग्रह पर जीवन की संभावना हेतु वैज्ञानिकों के प्रयास नियंतर जारी है !
                • बृहस्‍पति(जूपिटर)- यह एक पीले रंग का ग्रह है तथा सभी ग्रहों में आकृति में बड़ा है ! यह सौर परिवार का पांचवे नंबर का सदस्‍य है ! यह सूर्य की परिक्रमा लगभग 11 वर्ष 9 माह में पूरी करता है ! इसपर जीवन की कोई संभावना नहीं है !
                • शनि(सैटर्न)- यह भी एक सौरमण्‍डल का एक ग्रह है यह सौरमंडल में बृहस्‍पति के बाद दूसरा बड़ा ग्रह है यह सबसे सुन्‍दर दिखार्इ देने वाला वलयधारी ग्रह है यह सौर परिवार के छंठवे सदस्‍य के रूप में जाना जाता है ! यह लगभग 29 वर्ष 5 माह में अपनी परिक्रमा पूरी करता है ! यह ग्रह अत्यिधिक ठंडा है इसलिए इस ग्रह पर जीवन होने की संभावना नहीं है !
                • अरुण(यूरेनस)- यह शनि से छोटा ग्रह है ! इसके आसपास भी वलय(चक्र) का पता चला है यह सौर परिवार का सांतवा सदस्‍य और सूर्य से अधिक दूरी पर है ! यह 84 वर्षों में अपनी परिक्रमा पूरी करता है ! यह भी अत्‍यंत ठंडा होने के कारण इस पर भी जीवन के कोई संकेत नहीं पाये गये !
                • वरुण(नेपच्‍यून)- यह आकार में यूरेनस से छोटा ग्रह है ! व सूर्य से अत्‍यधिक दूरी पर स्थित है यह सौर मंडल का आठवां सदस्‍य है ! इसे सूर्य की एक परिक्रमा में 164 वर्ष लगते हैं ! यह भी यूरेनस की भांति अत्‍यधिक ठंडा है और अंधकार से भरा है ! इस पर जीवन की कोई संभावना नहीं है !
                • चन्‍द्रमा(मून)- यह एक उपग्रह है यह पृथ्‍वी का प्राकृतिक उपग्रह है ! यह आकार में पृथ्‍वी का 1/4 भाग के बराबर है पृथ्‍वी से इसकी औसत दूरी 3लाख 84 हजार कि.मी. है !




                24 अगस्‍त 2006 को अंतर्राष्‍ट्रीय खगोल विज्ञान परिषद द्वारा पारित प्रस्‍ताव अनुसार प्‍लूटो अब ग्रह के श्रेहणी में नहीं आता है अत: उसे ग्रहों में नहीं गिना जाना है !

                • ग्रह- निश्चित कक्षाओं पर सूर्य की परिक्रमा करने वाले आकाशीय पिण्‍डों को ग्रह कहते हैं !
                • कक्षा- आकाश में जिस मार्ग से ग्रह सूर्य की तथा उपग्रह ग्रह की परिक्रमा करते हैं उसे ग्रह पथ या कक्षा कहते हैं !
                • घूर्णन- ग्रहों का अपनी धूरी या अक्ष पर घूमना घूर्णन कहलाता है !
                • अक्ष- ग्रहों के दोनों ध्रुवों को अपने केंद्र से एक सीध में मिलाने वाली काल्‍पनिक रेखा को अक्ष कहते हैं !
                सूर्य का व्‍यास चन्‍द्रमा के व्‍यास से 400 गुना अधिक बड़ा है किन्‍तु चन्‍द्रमा की तुलना में पृथ्‍वी से सूर्य 400 गुना अधिक दूर है ! इसीलिए दोनों का आकार आकाश में समान दिखाई देता है ! वास्‍तविकता यह है कि आकाश में छोटे-छोटे पिण्‍ड निकट होने से आकार में बड़े दिखाई देते हैं जबकि बड़े-बड़े पिण्‍ड दूर होने के कारण आकार में छोटे दिखाई देते हैं !

                उपग्रह- ऐसे आकाशीय पिण्‍ड जो ग्रहों की परिक्रमा करते हैं ! उपग्रह कहलाते हैं ! उपग्रह भी सूर्य से प्रकाश और ऊष्‍मा प्राप्‍त करते हैं ! बुध और शुक्र को छोड़ सभी ग्रहों के अपने-अपने उपग्रह है ! चन्‍द्रमा हमारी पृथ्‍वी का एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह है ! प्राकृतिक उपग्रह के अतिरिक्‍त कुछ उपग्रह ऐसे भी हैं जो मानव द्वारा बनाये गये हैं ! उन्‍हें कृत्रिम उपग्रह कहते हैं ! भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा कुछ कृत्रिम उपग्रह अंतरिक्ष में छोड़े गये हैं ! उनमें सबसे पहला उपग्रह आर्यभट्ट, भास्‍कर, रोहणी, एप्‍पल आदि महत्‍वपूर्ण उपग्रह हैं ! इनके सूचना तंत्र का उपयोग मौसम की भविष्‍यवाणी, दूरदर्शन प्रसारण, रेडियो प्रसारण, संचार व्‍यवस्‍था, कृषि को उन्‍नत बनाने हेतु जानकारी का प्रसारण, खनिज संबंधी जानकारी प्रसारण आदि में किया जाता है !



                क्षुद्र ग्रह- सौरमण्‍डल के चित्र में देखिये मंगल और बृहस्‍पति के बीच छोटे-बड़े असंख्‍य पिण्‍डों की पट्टी फैली हुई है ! इन्‍हें क्षुद्र ग्रह कहते हैं ! ये ठोस पिण्‍ड विभिन्‍न आकारों के होते हैं !

                उल्‍काएं- कभी-कभी रात में तारों के बीच अचानक क्षण-भर के लिए तेज चमकदार लकीर सी दिखाई देती हैं जिन्‍हें बोल-चाल की भाषा में तारों का टूटना कहते हैं ! वास्‍तव में ये ऐसे छोटे-छोटे भटकते हुए उल्‍का पिण्‍ड हैं जो कभी-कभी पृथ्‍वी के गुरुत्‍वाकर्षण में आकर वायूमण्‍डल के घर्षण से जल उठते हैं ! 

                धूमकेतु- इन्‍हें पुच्‍छल तारे भी कहते हैं ! धूमकेतु सिर और लंबी पूँछ वाले ऐसे आकाशीय पिण्‍ड है, जिनका दिखने का समय और दिशा अनिश्चित होती है ! परिक्रमा करते हुए जब ये सूर्य के निकट से गुजरते हैं तो हमें दिखाई देते हैं ! हेली नामक धूमकेतु हमारा परिचित धूमकेतु है जो नियमित रूप से प्रति 76 वर्ष में दिखाई देता है !
                • उपग्रह- वे आकाशीय पिण्‍ड जो अपने ग्रहों की परिक्रमा करने के साथ सूर्य की परिक्रमा भी करते हैं, उपग्रह कहलाते हैं ! 
                • क्षुद्रग्रह- मंगल और बृहस्‍पति ग्रहों के बीच संकरी पट्टी में छितराए हुये छोटे-छोटे आकाशीय पिण्‍डों को क्षुद्रग्रह कहते हैं !
                • चन्‍द्रमा- हमारी पृथ्‍वी का एकमात्र उपग्रह चन्‍द्रमा है !
                • धूमकेतु- ऐसे प्रकाशमान आकाशीय पिण्‍ड जिनके सिर और लंबी पूंछ होती है तथा वे सूर्य की परिक्रमा भी करते हैं, पुच्‍छल तारे या धूमकेतु कहलाते हैं !
                • कृत्रिम उपग्रह- मनुष्‍य द्वारा निर्मित छोटे और अस्‍थाई उपग्रह !


                पृथ्‍वी-अनोखा जीवित ग्रह

                हमारी पृथ्‍वी सौरमण्‍डल का एक महत्‍वपूर्ण सदस्‍य है ! यह सूर्य की एक परिक्रमा 365 दिन 5 घंटे और 48 मिनिट और 46 सेंकड में पूरी करती है जो इसका एक सौर वर्ष कहलाता है ! प्राचीन काल में अधिकांश लोगों की यह धारणा थी कि पृथ्‍वी का धरातल चपटा और वृत्ताकार है ! सर्वप्रथम पाइथागोरस और अरस्‍तु ने यह बताया कि पृथ्‍वी गोलाकार है और आकाश में स्‍वतंत्र रूप से घूम रही है ! भारतीय विद्वान आर्य भट्ट और वराहमिहिर ने भी पृथ्‍वी को गोलाकार बताया ! आर्यभट्ट ने यहां तक लिखा कि पृथ्‍वी आकाश में अपने अक्ष पर घूमती है ! गतिमान पृथ्‍वी ने नक्षत्र- तारे भी उल्‍टी दिशा में जाते हुए दिखाई देते हैं !

                सौरमण्‍डल में हमारी पृथ्‍वी - पृथ्‍वी-अनोखा जीवित ग्रह - सूर्य से पृथ्‍वी की दूरी - प्रकाश वर्ष -  ब्रह्माण्‍ड -  आकाश गंगा - तारे व ग्रह में अंतर




                आकार में हमारी पृथ्‍वी सौरमण्‍डल का पांचवा सबसे बड़ा ग्रह है ! बुध, शुक्र और मंगल इससे छोटे तथा अरुण, वरुण, शनि और बृहस्‍पति इससे बड़े ग्रह है ! 

                सही-सही माप के बाद पता चला कि पृथ्‍वी एकदम गोल नहीं बल्कि ध्रुवों पर कुछ चपटी है ! अंतरिक्ष से देखने पर हमारी पृथ्‍वी का आकार गोल दिखाई देता है !

                • पृथ्‍वी सौरमण्‍डल का पांचवा सबसे बड़ा ग्रह है !
                • सूर्य से दूरी के क्रम बुध तथा शुक्र के बाद पृथ्‍वी का स्‍थान तीसरा है !
                • सूर्य की परिक्रमा की अवधि 365 दिन 5 घण्‍टे 48 मिनिट 46 सेकंड है !
                • पृथ्‍वी का अपने अक्ष पर घूर्णन का समय 23 घंटे 56 मिनिट 4 सेकंड !
                जीवित ग्रह- अभी तक हुई  खोजों के अनुसार सौरमण्‍डल ही नहीं बल्कि पूरे ब्रह्मांड में केवल हमारी पृथ्‍वी ही एक मात्र ऐसा ग्रह है जिस पर जीवन पाया जाता है इसीलिए इसे जीवित ग्रह कहते हैं ! आइए जाने वे कौने-कौने से कारण हैं जिनके कारण केवल पृथ्‍वी पर ही जीवन का विकास संभव हुआ है!

                • सूर्य से पृथ्‍वी की दूरी- सौरमण्‍डल में केवल पृथ्‍वी की ही ऐसी स्थिति है जो न तो सूर्य के अधिक पास है न अधिक दूर ! इसलिए यह न अत्‍यधिक गर्म है न अत्‍यधिक ठंडी ! इसका औसत तापमान 15डिग्री सेल्सियस रहता है ! इसमें थोड़ी-सी घट-बढ़ होती रहती है जिससे यहां जल ठोस, तरल और गैसीय अवस्‍था में मिलता है ! यहाँ जल की उपलव्‍धता से जीवन का विकास हुआ है !
                • ऑक्‍सीजन गैस की उपलब्‍धता- यहां जीवनदायिनी गैस आक्‍सीजन पर्याप्‍त मात्रा में पाई  जाती है जो किसी भी प्रकार के जीवन के लिए आवश्‍यक है ! आक्‍सीजन के अलावा यहां नाइट्रोजन और कार्बन डाईआक्‍साइड भी पर्याप्‍त मात्रा में वायुमंडल में विद्यमान है !
                • जीवनरक्षक गैस ओजोन- वायुमण्‍डल में स्थित ओजोन गैस की परत सूर्य की पराबैंगनी जैसी घातक किरणों से हमारी रक्षा करती है ! ओजोन परत नहीं होती तो सारे जीव और वनस्‍पति नष्‍ट हो जाते !
                • पृथ्‍वी पर तीन परिमण्‍डलों का होना- पृथ्‍वी पर वायुमण्‍डल, जलमंडल और स्‍थलमंडल का विस्‍तार है ! तीनों का आपस में उचित सन्‍तुलन बना हुआ है ! तीनों परिमण्‍डल के बारे में अधिक जानकारी आगे के अध्‍याय में दी गई है !
                इसके अलावा पृथ्‍वी पर 12-12 घण्‍टे वाली दिन-रात की आदर्श अवधि भी यहाँ जीवन के विकास में अनुकूल दशाएं प्रस्‍तुत करती है !
                इन्‍हीं कारणों से हमारी पृथ्‍वी पर विभिन्‍न प्रकार के जीव-जन्‍तु एवं वनस्‍पतियाँ पाई जाती हैं इसलिए पृथ्‍वी को एक जीवित ग्रह कहा गया है !

                चन्‍द्रमा- चन्‍द्रमा हमारी पृथ्‍वी का प्राकृतिक उपग्रह है ! रात में आसमान पर दिखने वाले समस्‍त आकाशीय पिण्‍डों में चन्‍द्रमा सबसे बड़ा नजर आता है ! क्‍योंकि अन्‍य पिण्‍डों की तुलना में वह पृथ्‍वी के अधिक निकट है ! अपने अक्ष पर चन्‍द्रमा लगभग 27 दिन 7 घंटे में एक बार घूम जाता है ! और इतने ही दिनों में पृथ्‍वी की एक परिक्रमा भी पूरी कर लेता है ! यह पहला आकाशीय पिण्‍ड है जिसके धरातल पर मनुष्‍य के चरण पड़े !
                सौरमण्‍डल में हमारी पृथ्‍वी - पृथ्‍वी-अनोखा जीवित ग्रह - सूर्य से पृथ्‍वी की दूरी - प्रकाश वर्ष -  ब्रह्माण्‍ड -  आकाश गंगा - तारे व ग्रह में अंतर

                हम प्रतिदिन चन्‍द्रमा के प्रकाशित भाग को घटता-बढ़ता देखते है ! जिन 15 दिन की अवधि में यह घटता है उसे कृष्‍ण पक्ष और दूसरी 15 दिन की अवधि में यह क्रमश: बढ़ता है उसे शुक्‍ल पक्ष कहते हैं ! जिस रात यह पूरा दिखई देता है उसे पूर्णिमा कहते हैं तथा जिस दिन इसका प्रकाशित भाग बिल्‍कुल दिखाई नहीं देता उसे अमावस्‍या कहते हैं ! पृथ्‍वी से चन्‍द्रमा की औसत दूरी 3 लाख 84 हजार किलोमीटर है ! यह पृथ्‍वी से चार गुना छोटा है ! यह सूर्य से प्रकाशित होता है !

                तारे- बादल रहित रात में हमें असंख्‍य तारे आसमान में झिलमिलाते हुई दिखाई देते हैं ! सौर मण्‍डल से बहुत दूर ऐसे आकाशीय पिण्‍ड जिनका अपना प्रकाश और ऊर्जा होती है, तारे कहलते हैं ! इनकी दूरिया प्रकाश वर्षों में मापी जाती है !

                प्रकाश वर्ष - प्रकाश वर्ष वह है जिसे प्रकाश तीन लाख किलामीटर प्रति सेकण्‍ड के वेग से एक वर्ष में तय करता है ! हमारा निकटतम तारा प्राक्सिमा सेन्‍चुरी हमसे 41/3 प्रकाश वर्ष दूर है !

                सूर्य भी एक तारा है जिसका अपना प्रकाश और अपनी ऊर्जा है आकाश के कुछ तारे तो हमारे सूर्य से भी कई गुना बड़े है ! लेकिन सूर्य की तुलना में वे वे इतने अधिक दूर है कि केवल टिमटिमाते हुए दिखते हैं ! जबकि ग्रह आकाश में अपना स्‍थान परिवर्तित करते रहते हैं !

                तारे व ग्रह में अंतर - तारे स्‍वयं प्रकाशवान होते हैं जबकि ग्रहों का स्‍वयं का प्रकाश नहीं होता है ! तारों की चमक स्थिर नहीं होती है, कम ज्‍यादा होती रहती है जबकि ग्रहों की चमक एक जैसी रहती है, तारे स्थिर होते हैं, जबकि ग्रह आकाश में अपना स्‍थान परिवर्तित करते रहते हैं !

                आकाश गंगा - स्‍वच्‍छ रात्रि में तारों के बीच बादलों जैसी एक दूधिया पट्टी दिखाई देती है ! वास्‍तव में वह बादल नहीं अपितु असंख्‍य तारों के समूह हैं ! जिसे आकाश गंगा कहते हैं ! असमें हमारे सूर्य जैसे अरबों तारे हैं ! हमारा सूर्य आकाश गंगा के एक डोर पर स्थित है !


                ब्रह्माण्‍ड - सारे पदार्थों और सारी आकाश गंगाओं और सारी ऊर्जा जिस अन्‍तहीन आकाश में व्‍याप्‍त है उसे ब्रह्माण्‍ड कहते हैं ! इस प्रकारी ब्रह्माण्‍ड अनन्‍त है !


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                पारस्‍परिक निर्भरता - गाँव व शहर के मध्‍य निर्भरता - दो देशों के मध्‍य निर्भरता

                पारस्‍परिक निर्भरता - गाँव व शहर के मध्‍य निर्भरता - दो देशों के मध्‍य निर्भरता

                पारस्‍परिक निर्भरता

                • पारस्‍परिक निर्भरता क्‍या है ?
                • समुदाय को पारस्‍परिक निर्भरता की आवश्‍यकता क्‍यों होती हैं ?
                • नगरीय व ग्रामीण क्षेत्रों के लोग आपस में किस प्रकार एक-दूसरे पर निर्भर है ?
                • नागरिक जीवन में परस्‍पर निर्भरता का क्‍या महत्‍व है ?
                प्राचीन काल में व्‍यक्तियों की आवश्‍यकताएँ सीमित थीं ! व्‍यक्ति अपनी अधिकांश आवश्‍यकताओं की पूर्ति स्‍वयं कर लेता था ! जैसे-जैसे विकास क्रम में वह आगे बढ़ा, उसकी आवश्‍कताएँ बढ़ती गई ! व्‍यक्ति पूर्ति स्‍वयं कर लेता था ! व्‍यक्ति अपनी जरूरतों को पूरा करने में दूसरों का सहयोग लेने लगा एवं कुछ मामलों में दूसरे लोगों पर निर्भर रहने लगा ! मनूष्‍य की मूलभूत आवश्‍यकताएँ समान होती हैं जैसे भोजन, कपड़े व आवास ! इन आवश्‍यकताओं में वृद्धि और विविधता, पारस्‍परिक निर्भरता का कारण बनी !

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                मनुष्‍य को जब विविधता का ज्ञान हुआ, उदाहरण के लिए भोजन में विभिन्‍न खाद्य वस्‍तुओं को पकाने के भिन्‍न ढंग, स्‍वाद में भिन्‍नता, आवास हेतु झोपड़ी या मकानों में भिन्‍नता तथा कपड़ों में विविधता आई तो प्रत्‍येक व्‍यक्ति को स्‍वयं ही ये सब जुटाना कठिन पड़ने लगा ! साथ ही विशेष चीजों में रुचि पैदा हुई और वह वस्‍तु उसे आवश्‍यक लगने लगी ! यह आवश्‍यकता उसे दूसरों के करीब ले गई तथा अपनी आवश्‍यकता व रुचियों की पूर्ति के लिए वह एक दूसरे पर निर्भर हो गया !

                किसी कार्य या आवश्‍यकता के लिए एक का दूसरे पर निर्भर होना पारस्‍परिक निर्भरता कहलाता है !


                पारस्‍परिक निर्भरता - गाँव व शहर के मध्‍य निर्भरता - दो देशों के मध्‍य निर्भरता


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                गाँव व शहर के मध्‍य निर्भरता

                भारत में लगभग 65-70 प्रतिशत लोग आज भी कृषि के व्‍यवसाय से जुड़े हुए है ! हम अपनी अधिकांश आवश्‍यकताओं को पूर्ण करने के लिए कृषि पर निर्भर है ! शहरी क्षेत्र अत्‍यधिक तकनीकी विकास के बावजूद भी कच्‍चे माल के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में उत्‍पादित वस्‍तुओं जैसे- अनाज, सब्जियों, फल, दूध आदि के लिए गाँव निर्भर रहते है ! इसी प्रकार ग्रामीण क्षेत्र खेती संबंधी वस्‍तुओं जैसे-खाद, बीज, दवाई, उन्‍नत मशीनें, कृषि यंत्र एवं दैनिक उपयोग की वस्‍तुओं आदि के लिए कारखानों व शहरों पर निर्भर रहते है ! इस प्रकार गाँव और शहरों में पारस्‍परिक निर्भरता बनी हुई है !



                एक क्षेत्र की दूसरे क्षेत्र पर निर्भरता-
                गाँव से बहुत सी वस्‍तुएँ शहर के लिए जाती हैं और शहर से बहुत सी वस्‍तुएँ गाँव में पहुँचती हैं ! इसके अलावा कई दूसरी चीजें अलग-अलग क्षेत्रों से शहर में पहुँचती है और वहाँ से दूसरे गाँव तक ले जाई जाती हैं ! इस तरह एक क्षेत्र बहुत दूर-दूर के अन्‍य क्षेत्रों  से जुड़ जाता है !

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                एक क्षेत्र पर निर्भर है ! इस बात को आप अपने गाँव या शहर के अनुभव से जान सकते हैं ! किसी एक क्षेत्र में सभी प्रकार की चीजें उपलब्‍ध नहीं होतीं ! जैसे एक क्षेत्र में सभी प्रकार की फसलें नहीं उगाई जा सकतीं ! इसी तरह अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग वस्‍तुएँ बनाई जाती हैं ! जेसे साबुन कहीं बनता है तो खाद कहीं और बनती है ! इसलिए एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में चीजों को मंगवाना जरूरी हो जाता है ! इस प्रकार एक क्षेत्र दूसरे पर निर्भर हो जाता है ! इसी प्रकार दो अलग-अलग क्षेत्रों में बसे शहरों के बीच भी परस्‍पर निर्भरता पाई जाती है !

                दो देशों के मध्‍य निर्भरता-
                इसी प्रकार किसी एक देश में सभी आवश्‍यकता की चीजें उपलब्‍ध नहीं होती या कम मात्रा में होती हैं, इसलिए उन्‍हें दूसरे देशों से मंगाना पड़ता है ! हम अपने देश का ही उदहरण लें तो यहां पेट्रोलियम पदार्थ (पेट्रोल, डीजल, मिट्टि का तेल), सेना के उपयोग के लिए आधुनिक उपकरण, हथियार आदि दूसरे देशों से मंगाए जाते हैं ! हमारे देश से मसाले, चाय, सीमेंट, तैयार कपड़े आदि दूसरे देशों को भेजे जाते हैं !

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                नागरिक जीवन में परस्‍पर निर्भरता-
                हम सब भारत के निवासी हैं ! भारत में जन्‍म लेने एवं यहाँ के निवासी होने के कारण हम सब भारत के नागरिक हैं ! आप अपने परिवार के साथ रहते हैं, आपके माता-पिता भी साथ रहते हैं, आपके भाई-बहन, दादा-दादी भी आपके साथ रहते होंगे ! आपके परिवार के सभी सदस्‍य एक-दूसरे के साथ सहयोग करते हैं ! आपके घर के आसपास और भी परिवार रहते हैं ! वे भी कई प्रकार से आपकी सहायता करते होंगे, आप भी उनकी सहायता करते होंगे ! विद्यालय में भी प्रधानाध्‍यापक, शिक्षक, भृत्‍य, मॉनीटर आदि सभी विद्यालय चलाले में मदद करते हैं ! हम अपने परिवार, पड़ोस, विद्यालय, कस्‍बों, गाँवों में अनेक प्रकार के कार्य करते हैं ! हम सब एक साथ मिलकर रहते हैं और एक-दूसरे की मदद करते हैं, और एक-दूसरे की मदद करते हैं, इससे हमारा सामाजिक जीवन बेहतर व सुविधाजनक बनता है !
                नागरिक जीवन आपसी सहयोग पर निर्भर करता है ! परिवार, विद्यालय, पड़ोस आदि में इस तरह के आपसी सहयोग की आवश्‍यता पड़ती है ! आपके विद्यालय के भी कुछ नियम होंगे जिनका पालन करना प्रत्‍येक छात्र तथा शिक्षक छात्र त‍था शिक्षक के लिए जरूरी है ! जो काम हमें नियमपर्वक करने होते हैं, हम उन्‍हें कर्तव्‍य भी कह सकते हैं ! हमारा नागरिक जीवन परस्‍पर सहयोग और कर्तव्‍य पालन पर ही निर्भर है !

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                परिवार एवं समाज - व्‍यक्ति - सामाजिक संबंध - समाज कैसे बनता है ?

                परिवार एवं समाज - व्‍यक्ति - सामाजिक संबंध - समाज कैसे बनता है ?

                परिवार एवं समाज

                • व्‍यक्ति तथा परिवार क्‍या है ?
                • समाज कैसे बनता है ?
                • परिवार एवं समाज के आपसी संबंध !
                आप जब शिशु अवस्‍था में थे, विद्यालय में पढ़ने नहीं आते थे, तब आपको घर पर कौन नहलाता धुनाता था ? आपको भोजन कौन करवाता था ? कपड़े कौन पहनाता था ? इन सभी कार्यों को आपके माता-पिता एवं घर के अन्‍य बडे़ सदस्‍य करते रहे होंगे ! जैसे-जैसे आप बड़े होते गए, कुछ काम आप स्‍वयं करने लगे होंगे ! घर अथवा पड़ोस में जब कोई बीमार पड़ जाता है, अथवा कोई कठिनाई में होता है, तब उसे दूसरों की सहायता की आवश्‍यकता होती है !



                जरा सोचिए ! जब आप शिशु थे तब आपकी माता आपकी देखभाल न करती तो क्‍या होता  ? माता-पिता अपने शिशूओं की जिम्‍मेदारी सहज रूप से स्‍वीकरते हैं ! यही भावना परिवार तथा समाज के सदस्‍यों में होती है ! इसी से परिवार व समाज संगठित रहता है !

                व्‍यक्ति

                आइए व्‍यक्ति, परिवार एवं समाज के विषय में जानें ! व्‍यक्ति परिवार की एक इकाई है ! व्‍यक्ति अपने परिवार में रहते हुए पलते-बढ़ते हैं और विभिन्‍न क्षेत्रों में अपना विकास करते हैं ! यदि आप अपने घर में कभी अकेले रहे हों, तो बताइए कि उस समय आपको कैसा लगा ! यदि अधिक समय तक अकेले रहना पड़ा होगा ता आपको निश्चित ही अच्‍छा नहीं लगा होगा !
                व्‍यक्ति की विशेषताएँ उसके वैयक्तिक गुण, भोजन, वस्‍त्र, आवास आदि के आधार पर निर्धारित होती हैं ! समाज में व्‍यक्ति राजनेता, धर्म उपदेशक, अध्‍यापक, न्‍यायाधीश, चिकित्‍सक, कृषक एवं श्रमिक आदि पद धारण कर विभिन्‍न कार्य करता है एवं समाज में अपनी पहचान बनाता है !



                परिवार

                परिवार में व्‍यक्ति एक इकाई है ! एकल परिवार में प्राय: पति-प‍त्‍नी, उनके पुत्र-पुत्रियाँ एवं संयुक्‍त परिवारों में पति-पत्‍नी व पुत्र-पुत्रियों के अतिरिक्‍त, दादा-दादी, चाचा-चाची आदि भी शामिल होते हैं !
                परिवार में व्‍यक्तियों के साथ-साथ रहने पर सुरक्षा का भाव पैदा होता है ! परिवार के सदस्‍यों की परिवार में व्‍यक्तिगत आवश्‍यकताएँ भी पूरी होती हैं ! परिवार के बड़े बुजुर्ग सदस्‍यों का प्‍यार, सीख व मार्गदर्शन छोटों से प्राप्‍त होता है ! माता को प्रथम गुरू भी कहा गया है ! बच्‍चे को प्रथम शिक्षा परिवार में माता के माध्‍यम से प्राप्‍त होती है ! परिवार के बड़े सदस्‍य बच्‍चों की साफ-सफाई, स्‍वास्‍थ्‍य व शिक्षा का ध्‍यान एवं बड़े-बूढ़ों की देखभाल सहर्ष करते हैं ! बच्‍चों को आगे की शिक्षा प्राप्‍त करने के लिए परिवार ही उन्‍हें विद्यालयों को सौंपता है ! परिवार के छोटे सदस्‍य भी वृद्धजनों की देखभाल करते हैं, व बड़ों का आदर करते हैं !


                परिवार एवं समाज - व्‍यक्ति - सामाजिक संबंध - समाज कैसे बनता है ?


                आपस में रिश्‍तेदारी, रक्‍त संबंध होते हुए एक घर में रहने वाले सदस्‍यों से मिलकर परिवार बनता है ! छोटे परिवार को आदर्श परिवार माना गया है ! विद्यालय भी एक परिवार के समान है ! 

                समाज

                कई परवारों से मिलकर समाज का निर्माण होता है ! परिवार समाज की एक इकाई है ! एक प्रकार के समाज में खान-पान, रहन-सहन, रीति-रिवाज, परम्‍पराएँ एवं प्रथाएँ प्राय: एक ही प्रकार के होते हैं !
                वर्तमान में बदलने आर्थिक एवं सामाजिक संदर्भों में समाज नए प्रकार से भी संगठित हो रहे हैं ! इन परिवर्तनों में शिक्षा का महत्‍वपूर्ण स्‍थान है ! इनका उद्देश्‍य सामाजिक रीति-रिवाजों में आ गर्इ कुरीतियों को दूर करना है ! वर्तमान में जागरूक समाज के लोग अपने-आपको संगठित कर एक मंच पर आना शुरू हो गए हैं ! 



                वे अशिक्षा, बाल-विवाह, दहेज जैसी सामाजिक बुराइयों को दूर करने के लिए कार्य कर रहे हैं ! यह नवीन सामाजिक प्रवृत्ति कर परिचालक है ! ऐसे संगठित समाज के लोगों ने अपने समाज के नियमों का भी निर्धारण किया है और सामाजिक क्रियाकलापों द्वारा व समाज के सदस्‍यों को विभिन्‍न प्रकार से प्रोत्‍साहन भी दे रहे हैं !
                मनुष्‍य एक सामाजिक प्राणी है, अत: समाज से पृथक रहकर वह अपनी तथा अपने सामाजिक हितों की रक्षा नहीं कर सकता ! यदि मनुष्‍य, मनुष्‍य की भांति रहना चाहता है, तो उसे अपने आसपास के लोगों से अच्‍छे सम्‍बन्‍ध बनाए रखने चाहिए !


                परिवार एवं समाज - व्‍यक्ति - सामाजिक संबंध - समाज कैसे बनता है ?


                समाज एक व्‍यावस्‍था है ! प्रत्‍येक समाज की एक संरचना होती है ! समाज का अपना संगठन होता है ! समाज का आधार सामाजिक संस्‍थाएँ और संबंध होते हैं !


                सामाजिक संबंध

                यदि दो व्‍यक्ति रेलगाड़ी या बस में साथ-साथ यात्रा कर रहे हैं और आपस में बातचीत भी कर रहे हैं, तो इतने मात्र से सामाजिक संबंध नहीं बन जाते ! यह कुछ देर का संपर्क मात्र है ! यदि सम्‍पर्कों को बढ़ाया जाए, एक-दूसरे के सुख-दु:ख में शामिल हुआ जाए तथा सम्‍पर्कों को किसी प्रकार का स्‍थाई आधार दिया जाए और इनका निर्वाह भी किया जाए तो सामाजिक संबंधों की स्‍थापना हो सकती है !

                समाज कैसे बनता है ?
                समाजशास्त्रियों ने समाज को सामाजिक संबंधों का जाल माना है ! वास्‍तव में अनेक परिवारों के आपसी संबंधों से समाज का निर्माण होता है मनुष्‍य सामाजिक प्राणी है अत: वह परिवार एवं समाज दोनों से जुड़कर रहता है ! व्‍यक्ति के जीवन में विवाह हेतु उचित साथी का चुनाव तथा विवाह के बाद बच्‍चों का पालन-पोषण उनकी शिक्षा-दीक्षा की व्‍यवस्‍था करना आदि की चिंताएँ सामने आती हैं ! समाज के सदस्‍य एवं उसके पारिवारिक मित्र आदि इन समस्‍याओं को सुलझाने में अपनी राय भी देते हैं ! 


                एक उन्‍नत समाज में व्‍यक्तियों की आपस में निर्भरता, साथ-साथ कार्य करने की भावना, व्‍यक्तिगत विचारों का सम्‍मान एवं सामाजिक घटना का सही-गलत विश्‍लेषण करने की क्षमता पाई जाती है !

                शिक्षित समाज अनेक सामाजिक समस्‍याओं जैसे कम उम्र में विवाह, अधिक संतानों का होना, बच्‍चों को प्रारंभिक एवं अनिवार्य शिक्षा न दिनाना जैसी बुराइयों पर नियंत्रण लगा सकता है !


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                आदिमानव - पुरा पाषाण काल - मध्‍य पाषाण काल - नव पाषाण अथवा उत्तर पाषाण काल - पहिए की खोज - पशुपालन एवं कृषि - आग की खोज

                आदिमानव - पुरा पाषाण काल - मध्‍य पाषाण काल - नव पाषाण अथवा उत्तर पाषाण काल - पहिए की खोज - पशुपालन एवं कृषि -  आग की खोज
                आदिमानव

                • मानव का क्रमिक विकास किस प्रकार हुआ है ?
                • आदिमानव का खानपान व रहन-सहन कैसा था ?

                आधुनिक खोजों से ज्ञात हुआ है कि लाखों वर्ष पूर्व इस पृथ्‍वी पर मानव का जन्‍म हुआ था ! पहले मनुष्‍य चार पैरों पर चलता था और जंगलों में रहता था ! वह पेड़ों की जड़ें, पत्तियाँ, फल-फूल इत्‍यादि खाता था ! कुछ छोटे जानवरों को मारकर उनका कच्‍चा माँस खाता था ! वस्‍त्र नहीं पहनता था व घूमता रहता था ! 

                यह बानर जैसा मानव खाने की तलाश में इधर-उधर दिन भर भटकता लेकिन रात होने पर और जानवरों से सुरक्षा व ठंड/बरसात से बचने के लिए गुफा जैसे स्‍थान मिलने पर उसमें रहने लगा ! लेकिन वह अधिकांशत: पेड़ों पर चढ़कर ही रहता था और इस तरह रात में जंगली जानवरों से अपनी सुरक्षा करता था ! संभवत: जब उसने  ऊँचाई पर लगे पेड़ों के फलों को देखा होगा तब उनको तोड़ने के लिए वह धीरे-धीरे अपने शरीर को संतुलित करते हुए चार के बजाए दो पैरों का उपयोग करने लगा होगा ! इस प्रकार उसके हो हाथ स्‍वतंत्र हो गए होंगे जिनका उपयोग वह धीरे-धीरे किसी चीज को खोदने, पकड़ने व उठाने में करने लगा होगा और इस तर‍ह वह दो पैरों का उपयोग वह धीरे-धीरे किसी चीज को खोदने, पकड़ने व उठाने में करने लगा होगा और इस तरह वह दो पैरों का उपयोग चलने एवं हाथों का उपयोग काम करने के लिए करने लगा होगा !
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                इस तरह मनुष्‍य में धीरे-धीरे शारीरिक परिवर्तन होते गए ! जैसे जब वह पैरों पर खड़ा होने लगा तो अधिक दूर तक देखने लगा होगा व आसपास की चीजों को देखने के लिए पूरे शरीर को घुमाने के बजाय सिर्फ गर्दन का उपयोग करने लगा ! हाथों का उपयोग पेड़ों की टहनियाँ पकड़कर फल तोड़ने, खाना लाने, खाना खाने के लिए करने लगा, इसी समय वह पीठ के बल सोने लगा होगा ! इस प्रकार शरीरिक परिवर्तनों के साथ-साथ मानव के सोचने की शक्ति का भी तेजी से विकास होने लगा ! उसके स्‍पष्‍ट रूप से रोने व हँसने की आवाज में भी अधिक स्‍पष्‍टता आ‍ती गयी !


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                निरन्‍तर आते परिवर्तनों के द्वारा अब मनुष्‍य अपनी मूलभूत आवश्‍यकताओं जैसे भोजन, आवास व सुरक्षा के बारे में भी सोचने लगा होगा ! भोजन की तलाश में घूमते रहने के साथ-साथ अब वह भोजन इकट्ठा भी करने लगा और जंगल में जानवरों से बचाव करने के लिए लकड़ी, जानवरों की हड्डीयों, सींगों, धारदार, नुकीले पत्‍थरों का प्रयोग करने लगा !
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                उपरोक्‍त तरह के मानव अर्थात आज से लाखों वर्ष पुराने मानव को आदिमानव कहा गया है !

                आदिमानव पत्‍थरों का उपयोग जानवरों के शिकार करने, माँस काटने, लकड़ी काटने, कन्‍दमूल खोदने आदि के लिए करता था  ! पत्‍थर को पाषाण भी कहते हैं, इसलिए इसे पाषाण युग कहा गया है ! आइए पाषाण युग के बारे में जानें-

                पाषाण काल- पाषाण काल लाखों वर्षों तक चला ! पत्‍थरों के औजारों के स्‍वरूपों के आधार पर इस युग को हम तीन भागों में बाँट सकते हैं-
                1. पुरा पाषाण काल
                2. मध्‍य पाषाण काल
                3. नव पाषाण अथवा उत्तर पाषाण काल

                1. पुरा पाषाण काल में औजार, पत्‍थरों को ताड़कर बनाए जाते थे ! ये आकार में विशाल होते थे ! धीरे-धीरे मानव ने इस कला में दक्षता प्राप्‍त कर ली ! सैकड़ों वर्षों के अनुभव व भौगोलिक परिवर्तन के कारण औजारों में बदलाव आया !
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                2. मध्‍य पाषाण काल में औजार आग्‍नेय पत्‍थरों से अधिक छोटे व पैने बनाये जाने लगे ! इनमें कठोर मजबूत पत्‍थर का प्रयोग किया जाने लगा ! इन पत्‍थरों की खास बात यह थी कि इनके फलक (चिप्‍पड़) आसानी से निकाले जा सकते थे और इन्‍हें मनचाहा आकार दिया जा सकता था ! प्रारंभ में हाथ में आसानी से पकड़े जा सकने वाले पत्‍थरों के औजार बनाए जाते थे ! धीरे-धीरे हथियारों में हत्‍थे लगाकर प्रयोग करने की कला मानव ने सीखी ! इन औजारों को लकड़ी के हत्‍थे में बांधकर इनकी शक्ति को बढ़ाया गया !
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                3. नव पाषाण अथवा उत्तर पाषाण काल में छोटे पैने तथा अधिक संहारक हथियार कड़े पत्‍थरों से बनाये जाने लगे ! जिनकी मारक क्षमता अधिक थी ! इन्‍हें बाण के अग्रभाग में तथा कुल्‍हाड़ी के पैने भाग के स्‍थान में लगाया जाता था !



                इस काल में पत्‍थर की चिकनी कुल्‍हाडि़याँ हाथ के बनाये बर्तन, झोपडि़याँ के निर्माण स्‍थल तथा लघु पाषाण उपकरण प्राप्‍त होते हैं ! इनका काल लगभग 2500ई.पू. माना जाता है ! इस काल से सिंधु सभ्‍यता के विकास का क्रम आरंभ होता है !
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                आग की खोज - पहले मनुष्‍य आग के बारे में नहीं जानता था ! जब उसने पहली बार जंगल में सुखी लकडि़यों को आपस में तेज रगड़ खाकर आग लगते हुए एवं पत्‍थरों के औजारों के निर्माण के दौरान दो पत्‍थरों के आपस में टकराने व चिंगारियों को निकलते हुए देखा होगा तब पहली बार मानव ने दो पत्‍थरों के आपस में टकराकर आग उत्‍पन्‍न की होगी ! यह मनुष्‍य की पहली सबसे बड़ी उपलब्धि थी ! आग के जलने से आदि मानव को बहुत लाभ हुआ जैसे-
                •   अब वे मांस भूनकर खाने लगे !
                •   रात के समय आग जलाकर प्रकाश प्राप्‍त करने लगे !
                •   ठंड के समय आग जलाकर गर्मी प्राप्‍त करने लगे !
                •   जंगली जानवर आग से डरते हैं अत: वे आग जलाकर जानवरों से अपनी सुरक्षा करने लगे !
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                आदि मानव भोजन की तलाश में घूमता रहता था ! थक जाने पर पेड़ों तथा पहाड़ों की गुफाओं में निवास करता था ! पहाड़ों की चट्टान को शैल भी कहते हैं ! शैल में निर्मित इन आश्रय स्‍थलों के कारण इन्‍हें शैलाश्रय भी कहते हैं ! ये शैलाश्रय कहीं-कहीं तो इतने बड़े हैं कि इनमें पाँच सौ व्‍यक्ति तक बैठकर आश्रय प्राप्‍त कर सकते हैं ! इन्‍हीं गुफाओं में बैठकर आदि मानव ने अपने दैनिक जीवन की क्रियाओं को चित्रित किया है ! चूंकि ये चित्र गुफाओं की चट्टानों पर बने हैं अत: इन्‍हें शैलचित्र कहते हैं !



                भारत में सैकड़ों स्‍थलों पर ऐसे चित्रित शैलाश्रय मिले हैं ! मध्‍यप्रदेश में भोपाल, विदिशा, रायसेन, सीहोर, होशंगाबाद, जबलपुर, मन्‍दसौर कटनी, सागर, गुना आदि जिलों में कई चित्रित शैलाश्रय मिले हैं ! आदि मानव के पास हमारे जैसे वस्‍त्र नहीं थे ! वे ठंड-बरसात आदि से बचने के लिए वृक्षों की छाल, पत्तों तथा जानवरों की खाल से अपना शरीर ढँकते थे ! इनकें साथ-साथ लकड़ी, सीप, पत्‍थर, सींग, हाथी दाँत और हड्डी के बने आभूषणों का भी प्रयोग करते थे ! ये पक्षियों के पंखों से भी आभूषण बनाते थे !
                हमारे प्रदेश में आज भी कई जनजातियां ऐसे ही श्रृंगार करती हैं और पंख, सीप, हड्डी, लकड़ी, रगीन पत्‍थर जानवरों के सींग तथा दाँतों से अपने आभूषण बनाते हैं !

                पशुपालन एवं कृषि
                नव पाषाण काल तक आदि मानव ने पशुपालन और खेती करने के प्रारंभिक तरीकों की खोज कर ली थी ! अब वह जान गया था कि शिकार के साथ-साथ पशुपालन उसके लिए महत्‍वपूर्ण है ! वह अनेक उपयोगी पशुओं को पालने लगा ! पशुओं से वह कई तरह के काम लेता था- शिकार करने में कुत्ता, खेती करने में बैल, दुध प्राप्‍त करने में गाय, भैंस, बकरी, मांस प्राप्‍त करने में बकरा, भेड़, सवारी हेतु बैल, भैंसा, घोड़ा, ऊँट आदि ! पुरातत्‍वविदों के अनुसार भारत में कृषि की शुरूआत आज से लगभग दस हजार साल पहले हो चुकी थी ! इस प्रकार आदि मानव का भोजन की तलाश में घूमना-फिरना कम हो गया ! अब वह जान गया था कि मानव और पशु-पक्षियों द्वारा खाकर फेंके हुए फलों के बीजों से नए पौधे उग आते हैं ! खेती करने की कला एक महत्‍वपूर्ण खोज थी जिसके कारण मानव को भोजन की तलाश में भटकने की जरूरत नहीं रही और अब उसने एक जगह बसना सीख लिया !



                लेकिन मानव को जब खाद्य सामग्री की कमी पड़ने लगी तब उसने जमीन/ खेत की खुदाई/ पत्‍थर/ लकड़ी हड्डियों से बने यंत्रों से करके जमीन में बीज बोना शुरू किया ! धीरे-धीरे मिट्टी व उसकी निदाई गुड़ाई व पौधों के लिए पोषक तत्‍वों का महत्त्‍व जाना व पानी के स्‍त्रोत के निकट वाली जमीन में सामान्‍यत: खेती करने लगा ! समयानुसार धीरे-धीरे कृषि का विकास हुआ वर्तमान में अपनी आवश्‍यकता के साथ-साथ मनुष्‍य ने अनेक विकसित कृषि यंत्रों का विकास किया जिससे कम समय में अधिक फसलें ली जा रही है ! इस प्रकार आदिकाल से लेकर आज तक मानव की कृषि पर निर्भरता लगातार बढ़ती गई और कृषि के विकास के साथ-साथ सभ्‍यता का विकास हुआ !




                पहिए की खोज 
                आदिमानव की प्रगति में पहिए की खोज का महत्‍वपूर्ण स्‍थान है और यह खोज उसके जीवनयापन के लिए वरदान साबित कई ! इस खोज से मानव ने बड़ी तेजी से प्रगति की ! इस खोज से मानव को कई लाभ हुए ! जैसे-
                आदिमानव - पुरा पाषाण काल - मध्‍य पाषाण काल - नव पाषाण अथवा उत्तर पाषाण काल - पहिए की खोज - पशुपालन एवं कृषि -  आग की खोज

                1. भारी चीज को एक स्‍थान से दूसरे स्‍थान तक लाने ले जाने में,
                2. गहराई से पानी खींचने में,
                3. पशुओं द्वारा खीची जाने वाली पशु गाड़ी निर्माण में,
                4. चाक से मिट्टी के बर्तनों के निर्माण में,
                इस खोज के बाद मनुष्‍य की लगातार प्रगति होती गई !




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